Wednesday, August 01, 2007
Wednesday, January 17, 2007
हिया में जब धइल गइल तनी-तनी सा बात के
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हिया में जब धइल गइल तनी-तनी सा बात के
असर बहुत-बहुत भइल तनी-तनी सा बात के
कहीं प फूल झर गइल कहीं प फूल खिल गइल
अलग-अलग असर भइल तनी-तनी सा बात के
जे जिन्दगी के हाल-चाल उम्र भर लिखत रहल
ऊ राज ना समझ सकल तनी-तनी सा बात के
ई मन बहुत मइल भइल तनी-तनी सा बात से
बेकार में ढोअल गइल तनी-तनी सा बात के
हजारो गम में रहेले माई
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हजारो गम में रहेले माई
तबो ना कुछुओ कहेले माई
हमार बबुआ फरे-फुलाये
इहे त मंतर पढेले माई
हमार कपडा, कलम आ कॉपी
सँइत-सँइत के धरेले माई
बनल रहे घर, बँटे ना आँगन
एही से सभकर सहेले माई
रहे सलामत चिराग घर के
इहे दुआ बस करेले माई
बढे उदासी हिया में जब-जब
बहुत-बहुत मन परेले माई
नजर के काँटा कहेलीं रउरा
जिगर के टुकडा कहेले माई
'मनोज' हमरा हिया में हरदम
खुदा के जइसन रहेले माई
सबसे बड़का शाप गरीबी
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सबसे बड़का शाप गरीबी
सबसे बड़का पाप गरीबी
डँसे उम्र भर, डेग-डेग पर
बन के करइत साँप गरीबी
हीत-मीत के दर्शन दुर्लभ
जब से लेलस छाप गरीबी
साधू के भी चोर बनावे
हरे पुन्य- प्रताप गरीबी
जन्म कर्ज में, मृत्यु कर्ज में
अइसन चँपलस चाँप गरीबी
सुन्दर, स्वस्थ,सपूत अमीरी
जर्जर बूढ़ा बाप गरीबी
जे अलाय बा ओकरा घर में
पहुँचे अपने आप गरीबी
सूप पटकला से ना भागी
रोग, दलिद्दर, पाप, गरीबी
ज्ञान भरल श्रम के लाठी से
भागी अपने आप गरीबी
सबका हिया में धड़कत, जिनिगी के दुआ तूहीं
सबका हिया में धड़कत, जिनिगी के दुआ तूहीं
सबका हिया में तड़पत, मउवत के हवा तूहीं
सुख के भले ना होखऽ, दुख के त सखा तूहीं
सब ओर से थकला पर आपन त खुदा तूहीं
बाटे ई कहल मुश्किल, के गैर के आपन बा
मौसम के तरह बदलत, रिश्तन में सगा तूहीं
रस्ता के पता नइखे, मंजिल के पता नइखे
जाये के जहाँ बाटे, ओह घर के पता तूहीं
जिनिगी अउँजाइल बा, हर ओर धुआँ बाटे
एह घोर अन्हरिया में असरा के दिया तूहीं
तोहरा से छुपाईं का, तोहरा से बताईं का
जे रोग लगल बाटे, ओकर त दवा तूहीं
'भावुक' हो ई साँचे बा, जरले प कहे दुनिया
सुलगत ए दोपहरी में सावन के घटा तूहीं
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हादसा कुछ एह तरे के हो गइल
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हादसा कुछ एह तरे के हो गइल
लोग दुश्मन अब घरे के हो गइल
रोप गइलें बीज बाबा बैर के
सात पुश्तन तक लड़े के हो गइल
अब गिलहरी ना रही एह गाँछ पर
वक्त पतइन के झरे के हो गइल
जब से लाठी गाँव के मुखिया बनल
साँढ़ के छुट्टा चरे के हो गइल
आँख में कुछ फिर उठल बा लालसा
आँख में कुछ फिर मरे के हो गइल
प्यार के अब जुर्म चाहे जे करे
नाम 'भावुक' के धरे के हो गइल
हर कदम जीये-मरे के बा इहाँ
हर कदम जीये-मरे के बा इहाँ
साँस जबले बा लड़े के बा इहाँ
जिन्दगी जीये के मकसद खोज के
ख्वाब के मोती जड़े के बा इहाँ
स्वर्ग इहवें बा,नरक बाटे इहें
जे करे के बा, भरे के बा इहाँ
फूल में तक्षक के संशय हर घरी
अब त खुशबू से डरे के बा इहाँ
जिन्दगी तूफान में एगो दिया
टिमटिमाते ही जरे के बा इहाँ
सुख के मोती ,सीप के अब खोज मे
दुख के दरिया तय करे के बा इहाँ
जिन्दगी के साँच बस बाटे इहे
एक दिन सभका मरे के बा इहाँ
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हियरा में फूल बन के खिले कौनो-कौनो बात
हियरा में फूल बन के खिले कौनो-कौनो बात
हियरा में शूल बन के हले कौनो-कौनो बात
जज्बात पर यकीन कइल भी बा अब गुनाह
दिल में उतर के दिल के छले कौनो-कौनो बात
अचके में पैर राख में पड़ते पता चलल
बरिसन ले आग बन के जले कौनो-कौनो बात
रख देला मन के मोड़ के, जिनिगी सँवार के
तत्काल दिल में लागे भले कौनो-कौनो बात
अनुभव नया-नया मिले 'भावुक' हो रोज़-रोज़
पर गीत आ गजल में ढ़ले कौनो-कौनो बात
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लाख रोकीं निगाह चल जाता
लाख रोकीं निगाह चल जाता
का करीं मन मचल-मचल जाता
राह में बिछलहर बा, काई बा
गोड़ रह-रह फिसल-फिसल जाता
रूप के आँच मन के लागत हीं
साँस लहकत बा, तन पिघल जाता
के तरे गीत गाईं जिनिगी के
हर घड़ी लय बदल-बदल जाता
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अब त हर वक्त संग तहरे बा
अब त हर वक्त संग तहरे बा
दिल के कागज प रंग तहरे बा
जे तरे मन करे उड़ा लऽ तू
डोर तहरे , पतंग तहरे बा
तोहसे अलगा भला दहब कइसे
धार तहरे , तरंग तहरे बा
साँच पूछऽ त हमरा गजलन में
छाव तहरे बा, ढ़ंग तहरे बा
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बात तोहरा से बताईं त बताईं कइसे
बात तोहरा से बताईं त बताईं कइसे
बात तोहरा से छिपाईं त छिपाईं कइसे
बात कागज ले रहित तब त अउर बात रहित
बात दिल पर से मिटाईं त मिटाईं कइसे
अब हिया में बा चढ़त जात निराशा के जहर
आस के फूल खिलाईं त खिलाईं कइसे
आग बाहर के ना ,भीतर के हऽ ई, ए भाई
एह से अपना के बचाईं त बचाईं कइसे
बात गजले में कहत बानी हिया के अपना
का करीं, मन के मनाईं त मनाईं कइसे
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जुल्म के तूफान के रउरे कहीं, कबले सहीं
जुल्म के तूफान के रउरे कहीं, कबले सहीं
खुद ना काहें बन के तूफानी हवा उल्टे बहीं
भेद मन के मन में राखब कब ले अइसे जाँत के
आज खुल के बात कुछ रउरो कहीं, हमहूँ कहीं
का हरज बाटे कि ख्वाबे के हकीकत मान के
प्यार के दरियाव में कुछ देर खातिर हम दहीं
घर बसल अलगे-अलग, बाकिर का ना ई हो सके
रउरा दिल में हम रहीं आ हमरा में रउरा रहीं
छल-कपट आ पाप से जेकर भरल बा जिन्दगी
कुछ हुनर सीखे बदे तऽ पाँव हम ओकरो गहीं
जिन्दगी के साँच से महरूम बाटे जे गजल
ओह गजल के हम भला 'भावुक' गजल कइसे कहीं
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राह बाटे कठिन, मगर बाटे
राह बाटे कठिन, मगर बाटे
चाहे बाटे अगर , डगर बाटे
होखे खपरैल भा महल होखे
नेह बाटे तबे ऊ घर बाटे
तींत भा मीठ जे मिलल हक में
ऊ त भोगे के उम्र भर बाटे
साँच पूछीं त हमरा गीतन पर
आज ले, राउरे असर बाटे
आँख नइखे ई चार हो पावत
लाख 'भावुक' मिलत नजर बाटे
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जिन्दगी के ताल में सगरो फेंकाइल जाल बा
जिन्दगी के ताल में सगरो फेंकाइल जाल बा
का करो मन के मछरिया हर कदम पर काल बा
छीन के भागत कटोरा भीख के बा आदमी
देख लीं सरकार रउरा राज के का हाल बा
तीन-चौथाई गुजारत रोड पर बा जिन्दगी
तब कही पगले नू कवनो देश ई खुशहाल बा
ना करे के से करावे काम एह संसार में
का कहीं 'भावुक' हो अइसन पेट ई चंडाल बा
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जुल्म के सामने चुप रहल
जुल्म के सामने चुप रहल
ई त जियते-जियत बा मरल
साँच के साथ देवे बदे
खुद से अक्सर लड़े के पड़ल
पाँव में हमरा काँटा चुभल
दर्द उनका हिया में उठल
हमरे रोपल रहल जंग ई
हमरे कीमत भरे के पड़ल
भीखमंगा सड़क पर सुतल
जइसे बालू प मछरी पड़ल
जेके पत्थर में खोजत रहीं ऊ
त धड़कन में हमरा मिलल
अब त 'भावुक' हो तहरा बिना
दू कदम भी बा मुश्किल चलल
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कटा के सर जे आपन देश के इज्जत बचवले बा
कटा के सर जे आपन देश के इज्जत बचवले बा
नमन वो पूत के जे दूध के कर्जा सधवले बा
बेकारी, भूख आ एह डिग्रियन के लाश के बोझा
जवानी में ही केतना लोग के बूढ़ा बनवले बा
कहीं तू भूल मत जइहऽ शहर के रंग में हमके
चले का बेर घर से ई केहू किरिया खियवले बा
सँभल के तू तनी केहू से करिहऽ प्यार ए 'भावुक'
जरतुआ लोग इहँवों हाथ में पत्थर उठवले बा
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गजबे मुकद्दर हो गइल
गजबे मुकद्दर हो गइल
गड़ही समुन्दर हो गइल
साथी त टंगरी खींच के
हमरा बराबर हो गइल
घरही में सिक्सर तान के
बबुआ सिकन्दर हो गइल
राजा मदारी कब भइल?
जब लोग बानर हो गइल
'भावुक' कहाँ भावुक रहल
ईहो त पत्थर हो गइल
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Tuesday, January 16, 2007
परेशान रहला से का फायदा बा
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परेशान रहला से का फायदा बा
जरूरत बा आफत से डटके लड़े के
सफर से ना घबरा के, खुद के सम्हारत
बा तूफाँ से टकरा के आगे बढ़े के
कदम-दर-कदम डेग आगे बढ़ावत
सफलता-विफलता के माथे चढ़ावत
दिवारन प गिर-गिर चढ़त चिउँटियन के
तरह हौसला रख के ऊपर चढ़े के
जे रूकल, जे जमकल, से गड़ही के पानी
ऊ केहू के कामे ना आई जवानी
नदी के तरह प्यास सभकर बुझावत
जरूरत बा पथ पर निरंतर बहे के
पते ना चले कब चुभल काँट कहवाँ
रखे के पड़ी कुछ नशा एह तरह के
अग र कामयाबी के चाहत बा 'भावुक'
अगर बा अमावस के पूनम करे के
दुख-दरद या हँसी या खुशी,
दुख-दरद या हँसी या खुशी, जे भी दुनिया से हमरा मिलल
ऊहे दुनिया के सँउपत हईं, आज देके गजल के सकल
जब भी उमड़ल हिया के नदी, प्यार से, चोट से, घात से
बाढ़ के पानी भरिये गइल मन के चँवरा में बनके गजल
रात के कोख में बाटे दिन, दिन के भीतर छुपल बाटे रात
गम के भीतर खुशी बा अउर हर खुशी लोर में बा सनल
बात मानऽ ना मानऽ मगर कुछ ना कुछ बात बाटे तबे
पाँव में हमरा काँटा चुभल, दर्द तहरा हिया में उठल
हम त 'भावुक', गजल-गीत में, छंद के बंध में बंद हो
बात कहलीं बहुत कुछ मगर बा बहुत कुछ अभी अनकहल
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अनजान शहर बाटे, अनजान सफर बाटे
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अनजान शहर बाटे, अनजान सफर बाटे
मजबूर मुसाफिर बा, चलहीं के डहर बाटे
हर मोड़ पे आके हम गुमराह भले भइनी
पर आस मरल नइखे, मंजिल प नजर बाटे
तब गैर रहे लूटत, अब आपने लूटत बा
एह देश में सदियन से, लूटे के लहर बाटे
मतलब के निकलते ही बर्ताव बदल जाता
फइलत बा फिजा में अब कइसन दो जहर बाटे
भाई के मुसीबत में, भाई ही सटत नइखे
एह खून के रिश्ता में, कइसन ई कसर बाटे
'भावुक' हो ई जिनिगी तऽ, पतझार के पतई हऽ
ई काल्ह रही कहँवाँ, केकरा ई खबर बाटे
Saturday, January 13, 2007
शेर जाल में फँस जाला तऽ सियरो आँख देखावेला
शेर जाल में फँस जाला तऽ सियरो आँख देखावेला
बुरा वक्त जब आ जाला तऽ अन्हरो राह बतावेला
कबो-कबो होला अइसन जे छोटके कामे आवेला
देखीं ना, सागर, इनार में, इनरे प्यास बुझावेला
सूरज से ताकतवाला के बाटे दुनिया में , बाकिर
धुंध, कुहासा, बदरी, गरहन उनको ऊपर आवेला
कबो-कबो होला अइसन जे सोना उहँवे निकलेला
बदगुमान में लोग जहाँ पर लात मार के आवेला
पास रहेलऽ तब तऽ तहरा से होला रगड़ा-झगड़ा
दूर कहीं जालऽ तऽ काहे तहरे याद सतावेला
पटना से दिल्ली, दिल्ली से बंबे, बंबे से पूना'
भावुक' हो आउर कुछुवो ना, पइसे नाच नचावेला
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का बा तहरा-हमरा में
का बा तहरा-हमरा में
जिनिगी प्रेम-ककहरा में
जीत-हार सब धोखा हऽ
कुछ नइखे एह झगड़ा में
धन-दौलत सब तू ले लऽ
माई हमरा बखरा में
चिन्हीं कइसे केहू के
सौ चेहरा इक चेहरा में
गाय कसाई के घर में
कुतिया ए॰ सी॰ कमरा में
हमरे खातिर पागल तू
अइसन का बा हमरा में
मत मारऽ कंकड़-पत्थर
हमरा मन के पोखरा में
'भावुक' के भी राखऽ तू
कतहूँ अपना हियरा में
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हमरा विश्वास बाटे कि हम एक दिन
हमरा विश्वास बाटे कि हम एक दिन अपना सपना के साकार करबे करब
लाख घेरो घटा आ कुहासा मगरबन के सूरज कबो त निकलबे करब
हर डगर बा नया, हर गली बा नया,लोग अनजान बा, हर शहर बा नया
हौसला बा अउर, पास में बा जिगरजहवाँ जाये के बाटे, पहुँचबे करब
पेट से सीख के केहू ना आवे कुछ,एगो अपवाद अभिमन्यु के छोड़ दीं
सीखते-सीखते लोग सीखे इहाँ,ठान लीं जो सीखे के तऽ सीखबे करब
पहिले मंजिल चुनीं सोच के दूर ले, राह फिर तय करीं योजना के तहत
लेके भगवान के नाम चलते रहीं, सोचते कि हम कर गुजरबे करब
बीच दरियाव में आके लौटे के का,पीछे मुड़-मुड़ के देखे के, सोचे के का
जे भइल से भइल, जे गइल से गइल पार उतरे के बा तऽ उतरबे करब
मौत मंदिर में, मस्जिद में, बाजार में,मौत संसद में, घर में आ बस-कार में
तब भला मौत से डर के काहें रुकींमौत आई तऽ कतहूँ त मरबे करब
ई अलग बात बा आज ले सीप में, हमरा हर बेर 'भावुक' हो बालू मिलल
पर इहे सोच के अभियो डूबल हईं ,एक दिन हम त मोती निकलबे करब
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तोहरे बा आसरा अब, तोहरे बा अब सहारा
तोहरे बा आसरा अब, तोहरे बा अब सहारा
कुछ रास्ता देखावऽ, कुछ तऽ करऽ इशारा
तोहरा के छोड़ के हम, केकरा के अब पुकारी
कुछ कर देखावऽ अइसन, हमरो मिले किनारा
तोहरा त सब पता बा, हमरा कहे के का बा
ओकरे से तू मिला दऽ, हमरा जे लागे प्यारा
पसरो ऊ हाथ कइसे, हरदम जे बा लुटवले
अतना जरूर दीहऽ, होखत रहे गुजारा
दुख के घड़ी में आपन, केहू कहाँ बा साथे
सब लोग तऽ भरल बा, रिश्तन के बा पसारा
उतरत-चढ़त रहेला मन आदमी के अइसे
जइसे चढ़े आ उतरे कवनो नली में पारा
एक दिन जरूर चमकी 'भावुक' गगन में, बाकिर
गरहन अभी बा लागल, गर्दिश में बा सितारा
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दिल में प्यारे के बीआ बोआ जब गइल
दिल में प्यारे के बीआ बोआ जब गइल,प्रीत के तब फसल लहलहइबे करी
एह तरे जो मिलइहें नजर से नजर,लाज में तन में सिहरन समइबे करी
दिल के दुइयो घरी जे रखे कैद में,ऊ कहाँ बा कहीं जेलखाना बनल
दिल परिन्दा हऽ, लइका हऽ, भगवान हऽ,जवना अँगना में चाही, ऊ जइबे करी
फूल-कलियन के परदा में रख लीं भले,रउरा खुशबू के परदा में रख ना सकब
झूम के जब चली कवनो पागल हवा,भेद घर के ऊ रउरा बतइबे करी
लाश के ढेर पर जे बनत बाटे घर, ओके मंदिर कहीं, चाहे मस्जिद कहीं
देवता दू घरी ना ठहरिहें उहाँ,ऊ पिशाचन के डेरा कहइबे करी
के जरल, के मरल, के कटल, के धसल,कुछ पता ना चलल, मामला दब गइल
एगो साजिश के कबले कहब हादसा,चोर कहियो ना कहियो धरइबे करी
जुल्म 'भावुक' हो केतना ले केहू सही,खून के घूंट कहिया ले केहू पीही
फेरु लंका लहकबे-दहकबे करी,फेरु रावण मरइबे-जरइबे करी
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वक्त जीवन में अइसन ना आवे कबो
वक्त जीवन में अइसन ना आवे कबो
बाप बेटा के अर्थी उठावे कबो
रोशनी आज ले भी ना पहुँचल जहाँ
केहू उहँवों त दियरी जरावे कबो
सब बनलके के किस्मत बनावे इहाँ
केहू बिगड़ल के किस्मत बनावे कबो
जे भी आइल सफर में दुखे दे गइल
केहू आइल ना हमके हँसावे कबो
हमरा हर कोशिका में समाइल बा जे
काश! हमरा के आपन बनावे कबो
सबका गोदी के 'भावुक' खेलवना बने
काश! बचपन के दिन लौट आवे कबो
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हिया हमार तार-तार हो गइल
हिया हमार तार-तार हो गइल
बेकार में ही आँख चार हो गइल
नजर नजर के आर-पार हो गइल
त तेज शायरी के धार हो गइल
मना कइल गइल जे काम, मत करऽ
उहे त काम बार-बार हो गइल
हिया हिया से ए तरे मिलल कि अब
उहे हमार घर-दुआर हो गइल
तहार साथ छूटते ई का भइल
धुँआ-धुँआ उठल, अन्हार हो गइल
ऊ बेवफा कहीं ना चैन पा सके
जे चैन लूट के फरार हो गइल
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एह कदर आज बेरोजगारी भइल
एह कदर आज बेरोजगारी भइल
आदमी आदमी के सवारी भइल
पेट के आग से ई भइल हादसा
केहू डाकू त केहू भिखारी भइल
आग प्रतिशोध के कबले भीतर रहित
आज खंजर, ऊ भोथर कटारी भइल
बात बढ़ते-बढ़त बढ़ गइल एह तरे
एगो लुत्ती लहक के लुकारी भइल
रोजमर्रा के घटना बा, अब देश के
पार्लियामेण्ट में गारा-गारी भइल
एह सियासी मुखौटा के पीछे चलीं
इहवाँ चूहा से बिल्ली के यारी भइल
कौन मुश्किल बा सत्ता के गिरगिट बदे
छन लुटेरा, छने में पुजारी भइल
आम जनता बगइचा के चिरई नियन
जहँवाँ रखवार हीं बा शिकारी भइल
लोग मिल-मिल के ओझल भइल आँख से
जिन्दगी जइसे इक रेलगाड़ी भइल
नाम एके गो गूँजत बा मन-प्रान में
जब से 'भावुक' हो तहरा से यारी भइल के
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घाव पाकी त फुटबे करी
घाव पाकी त फुटबे करी
दर्द छाती में उठबे करी
बिख भरल बात लगबे करी
शूल आँतर में चुभबे करी
खीस कब ले रखी आँत में
एक दिन ऊ ढकचबे करी
जब शनिचरा कपारे चढ़ी
यार, पारा त चढ़बे करी
दोस्ती जहँवाँ बाटे उहाँ
कुछ शिकायत त रहबे करी
राह कहिये से देखत बा जे
ऊ त रह-रह चिहुकबे करी
बाटे नादान 'भावुक' अभी
राह में गिरबे-उठबे करी
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निश्छल, निर्मल, कल-कल, छल-छल,झरना जइसन मन दे दीं
निश्छल, निर्मल, कल-कल, छल-छल,झरना जइसन मन दे दीं
देबे के बाटे भगवन तऽ,फेरू ऊ बचपन दे दीं
हीरा-मोती, सोना-चानी,गाड़ी-बंगला ना चाहीं
बस एगो छत, छत के नीचे,खुला-खुला आँगन दे दीं
लिपटे भले भुजंग, अंग विष,व्यापे ना, हे राम कबो
अइसन अमृत जइसन मनआ चंदन जइसन तन दे दीं
दिल में उनका पत्थर बाटे,पत्थर में भी काई बा
अब ओह पत्थर के जगहा दिल,दिल में कुछ धड़कन दे दीं
लाल खून बा रोड प पसरल,नीला तन के भीतर बा
एह आलम में चक्र-सुदर्शनलेके अब दर्शन दे दीं
जे हमरा के समझ सके,हमरा के मन से अपनावे
अइसन केहू मिले त हम, ओकरा के दिल आपन दे दीं.
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काँट ही काँट बा जो डगर में
काँट ही काँट बा जो डगर में
फूल ही फूल राखीं नजर में
मन बना के ना देखीं उड़े के
जान अपने से आ जाई पर में
कुछ भरोसा त उनको प राखीं
जे बसल बाड़ें सबका जिगर में
देर होई मगर दिन ऊ आई
जब खुशी नाची आँगन में, घर में
हौसला, आस, विश्वास राखीं
होके निर्भय चलीं एह सफर में
Home
Friday, January 12, 2007
युवा-मन की प्रतिक्रिया में उभरती जिन्दगी की तस्वीर
माई रे, अपना घर के ऊ आँगन कहाँ गइल।
भउजी हो, तोहरा गाँव के मधुवन कहाँ गइल।' (गजल सं 1)
यहाँ माई रे' और भउजी हो' को देखा जाना अनिवार्य है।इस रे' और हो' में भोजपुरिया जीवन शैली और रिश्तों की पारस्परिकता एवं पारम्परिकता की गंध सुरक्षित है। कवि यहाँ अपने अतीत-व्यतीत होते समय-संदर् की सक्रियता, मिठास, सझियाँव एवं खुलेपन को पाना चाहता है।यह माई रे' इसलिए इनकी गजल में है कि यह वह माई है जो अपने बेटे की खुशी में ही अपनी खुशी तलाशती है।उसी की नींद सोती और उसी की जाग जगती है।इनकी गजलों में व्यतीत होते समय की एक संवेदनशील शिनाख्त है। कवि इस बात को लेकर चिंतित, विह्वल और भावुक हो उठता है कि घर के जिस आँगन में उसका बचपन गुजरा है, वह आँगन अब गायब हो गया है।यहाँ गौर करने की जरूरत है कि कवि यह महसूस करता है कि कमरें तो हैं, लोगबाग भी हैं, जिंदगी की एक अपनी रफ्तार भी है, पर नहीं है तो वह आँगन-जिसमें तमाम कमरों के दरवाजे खुला करते थे और तमाम गतिविधियां उसी से होकर संचालित होती थीं।यह आँगन अब मिट गया है तो इसके भी कुछ कारण हैं।ऐसा नहीं कि इनकी गजलों में उन कारणों की परख-पड़ताल नहीं है। ये कारण अलग-अलग गजलों में अलग-अलग ढंग से परखे-पहचाने गये हैं।
मनोज की गजलों में सपने बुनता हुआ और सपनों के टूटने से आहत-आक्रोशित होता हुआ एक युवा-मन भी दिखाई देता है।यह मन दुखी भी होता है और अपने दुखों को अपने में ही नहीं रखता, बल्कि गा-गाकर बाँटता भी है और अपने दुखों को युवासुलभ दार्शनिकता का जामा भी पहनाता है।यहाँ कहना चाहूंगा कि सपनों और दुखों का इनका संसार इकहरा है और हद तक सपाट भी।युवा-मन का सतरंगा इन्द्रधनुष यहाँ सजने से पहले ही बिखर जाता है।संभव है कि कवि कोई खास बात कहना चाहता हो।वह प्रतिकूलताओं में फँसे युवा-मन की कसमसाहट को प्रकट करना चाहता हो।वह कहना चाहता हो कि एक स्वप्नशील-कल्पनाशील मन के लिए दायरों की कमी है।कवि के मन में, यह सच है कि ये सारे सवाल उथल-पुथल मचाये हुए हैं और वह स्वयं इसे महसूस करता है कि जो मन में शोर मचाये हुऐ हैं, वे अपने उसी वजन पर प्रकट नहीं हो पा रहे हैं।कवि अपनी बेचैनी और रचना-प्रक्रिया पर यहाँ टिप्पणी करते हुए बात स्पष्ट करता है-
जे राग मन में बाटे, सुर पर सधात नइखे
काहे दो बात मन के, यारे, कहात नइखे।' (गजल सं १२)
भारतीय जन-जीवन में व्याप्त निराशा भी इनकी गजलों का मुख्य विषय है।अशोकद्विवेदी, मिथिलेश गहमरी आदि की गजलों में भी यह निराशा आई हुई है। इस निराशा को अन्य भारतीय भाषाओं के साहित्य में भी देखा जा सकता है।लेकिन मनोज की गजल में गहरी निराशा के बावजूद उम्मीद का एक ऐसा दीया' भी है, जो अपनी लय में तो नहीं, पर जलता है, भुकभुकाते हुए ही सही। कवि कहता है कि यह मन का दीया' है। कवि मन की अपराजेयता को अपने ढंग से देखता है -
मन बहुत लरियाह ह, सोचे ना कवनो बात के
ई त बाते-बात पर बारे दिया उम्मीद के।' (गजल सं १८)
ई अलग बात बा आज ले सीप में, हमरा हर बेर भावुक' हो बालू मिलल
पर इहे सोच के अभियो डूबल हईं, एक दिन हम त मोती निकलबे करब' (गजल सं ४०)
भारतीय शासक वर्ग के अमन-विरोधी, जनविरोधी चरित्र की पड़ताल भी इनकी गजलों में है।
लाश के ढेर पर जे बनत बाटे घर, ओके मंदिर कहीं चाहे मस्जिद कहीं
देवता दू घरी ना ठहरिहें उहॉं, ऊ पिशाचन के डेरा कहइबे करी' (गजल सं ३७)
कवि यह महसूस करता है कि यहाँ जो मार-काट है, गरीबी है, बेरोजगारी है, लूट-खसोट है,उम्मीद का टूटना है, रिश्ते-नातों में घिसाव है, अपने ही परिवेश में परिचय-पहचान विहिन होते जाना है- इन सबों के लिए प्रथमतह्य सत्ता के केन्द्र में बैठे हुए लोग जिम्मेवार हैं।आम आदमी अब अपने को अकेला महसूस कर रहा है। गजल जो कोई आम आदमी के अकेलेपन की पीड़ा, स्थिति और अवसाद से सम्बन्ध बनाए, अकेल आदमी की बुदबुदाहट को सुने तो यह उसकी संवेदनशीलता का एक अहम पक्ष है। यहाँ यह देखने की बात है कि मनोज अपनी गजल को आम आदमी की झाँझर मड़इया' जो 'फूस' की है, में पूस की आती हुई धूप तक ले जाते हैं।पूस की धूप बहुत प्यारी होती है, लेकिन पूस की रात? इसको समझने के लिए प्रेमचन्द की कहानी पूस की रात' को पढ़ना अनिवार्य है। इस कष्टकर रात के दुखद अहसास को कवि ने विषय के रूप में नहीं अपनाया है, लेकिन यह अहसास इस गजल में आए बिना नहीं रहता। यह गरीबी का एक स्थिति-चित्र है - व्यंग्यात्मक-
ना रहित झाँझर मड़इया फूस के
घर में आइत धूप कइसे पूस के।' (गजल सं ३)
मनोज की गजलों में एक उल्लसित युवा-मन भी है सदिच्छाओं से भरा हुआ। आत्म-संवाद भी है। युवा-मन का विचलन, उसकी आशंकायें-आकांक्षायें एवं बेतरतीबियाँ भी कम नहीं हैं।कवि का वह मन भी है जो प्रेम करता है, कसमें खाता है, प्रतिज्ञा करता है, बहकता है, एक बात की बार-बार रट लगाता है। युवा सुलभ रोमान भी इनकी गजलों में शुमार है।
दरियाव उम्र के अब भावुक' उफान पर बा
हमरा से बान्ह एह पर बन्हले बन्हात नइखे'(गजल सं १२)
मनोज भावुक के गजल-संग्रह तस्वीर जिंदगी के' की गजलों में भारतीय समय, समाज, राजनीति एवं संस्कृति पर एक युवा-मन की प्रतिक्रियाए संकलित हैं। गजल के क्षेत्र में ये और नये-नये प्रयोगों के साथ आएँगे, पाठक समुदाय इस लिहाज से इनको निहार रहा है। ये गजल के सुर-ताल को नई ऊँचाई देंगे, ऐसा विश्वास बन रहा है।
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तस्वीर जिन्दगी के (भोजपुरी ग़ज़ल-संग्रह), कवि -मनोज 'भावुक'
प्रथम संस्कारण २००४, प्रकाशक - भोजपुरी संस्थान, पटना,
मूल्य - साठ रूपया, कुल पृष्ठ ११०
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डा. बलभद्र
प्रवक्ता, हिन्दी
बलदेव पीजी कालेज बड़ागाँव,
वाराणसी (उत्तर प्रदेश)
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Review of 'Tasvir Zindagi ke' by Binay Kumar Pandey
I have just finished a Bhojpuri gazal collection "Tasveer Zindagi Ke" by Manoj Bhawuk. There are total of 60 gazals in this book, each one is mirror of emotions of modern young Indian trying to balance the rich tradition with modern but honourable social feelings. Every gazals paints such a picture of passion that reader finds his image out there. Very hummable & rythmic gazals forces readers to finish it in a single go. The young talented poet, Manoj Bhawuk is destined to have a very respected position among literary circle of Hindi-Bhojpuri bhasha. You can read all the gazals http://www.bhojpuri.org or at bhojpuri sansaar section of this site
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Review of ' Tasvir Zindagi ke' by Kamlesh Pandey
Ghazal in Bhojpuri language has its own charm. A language of the eastern part of India, bhojpuri is a sweet, lyrical sounding language with enormous tradition of folklore. Bhojpuri tunes and songs have always been an integral part of Indian cinema and performing arts and are tremendously popular all over India. The modern bhojpuri ghazal follows a strict poetical discipline and has given a new dimension to the bhojpuri geet(song) tradition. Manoj is a representative figure of the this new trend of modern Bhojpuri poetry, who has made the Bhojpuri literature proud by winning “Bharatiya Bhaasha Parishad”( Indian Languages council) award. This poet has achieved this distinction at a time when the literature of the language itself is struggling for survival due to onslaught of cheap and vulgar cinema and music-videos.
The title of the book “ Tasveer Zindgi ke”( Glimpses of life) speaks of itself. The portrait of life is brightly visible in the sixty ghazals. The content of the ghazals are simple, straight forward and largely indebted to the typical idioms of bhojpuri culture, yet having a distinct modern sensibility, which ic capable of expressing dilemmas of simple souls in these complex times. The ghazals of Bhawuk bear a thorough positive tone with a clear vision for a bright future for humanity. He talks about affection, brotherhood, enormous love for mother, his village and its surroundings and many social dogmas, A few couplets are also about dual faces of politics, while in some, he just puts before us some deep-rooted philosophy in very simple words:
“None could write the story of life..”
“The destiny of a person’s dream is that if it comes alive, it is life, but if dies remains a dream..”
And his undying optimism is reflected in these words-“… a lamp of hope fighting the blows of wind has been placed on the door-steps of heart..”
In one couplet, Manoj sides with a person who snatches food to fill-up his empty stomach. In another, he comments on the modern ways that a cow is sent to a butchers house, which a dog(bitch) lives in AC room. It is difficult to translate Bhawuk’s shairee in any language due to it’s peculiar Bhojpuri idiomatic styles. The essence of the subject goes waste in the process, as the undercurrents of these words are from a life which keeps oscillating between deep-rooted love for the native culture and traditions and a modern life adopted through migration. Still, the ghazal titled “mother” has that universal appeal where Bhawuk says that ‘Hiyaraa me khudaa ke jaisan rahele maaee” (my mother lives in my heart like God.) In this particular ghazal Bhwuk become completely bhawuk and goes down the memory lane to remember moments like mother organizing his cloths, pen, books and also that how she comes to his mind instantly when he is sad.
Manoj Bhawuk has ignited the hope that the neglected languages like Bhojpuri, with rich traditional flavors can be revived through using them for expression of modern sensibilities in the common and popular formats. The people who tend to refrain from speaking these languages/dialects can be attracted to this language only by writing such quality literature. This is also the only way to fight the tendency of making cheap stuff in native languages to gain market.
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आँख से कुछ कसर हो गइल
30
आँख से कुछ कसर हो गइल
उम्र के कुछ असर हो गइल
बात पर बात खुलिये गइल
आज सभका खबर हो गइल
आँख से जमके बारिश भइल
साफ दिल के डहर हो गइल
लोर पोंछत बा केहू कहाँ
गाँव अपनो शहर हो गइल
अब चलल राह मुश्किल भइल
लोभी सभके नजर हो गइल
तहरा पीछे सुरीला रहे
सामने मौन स्वर हो गइल
अब अकेले कहाँ बानी हम
जब गजल हमसफर हो गइल
का करित जो इहो करित ना तऽ
का करित जो इहो करित ना तऽ
लूट के पेट ऊ भरित ना तऽ
फाट जाइत करेज कहिये ई
आँख से दर्द जो बहित ना तऽ
टूट जइतीं, बिखर-बिखर जइतीं
नेह भाई के जो मिलित ना तऽ
लोग कहिये उखाड़ के फेंकित
पेड़ जो आज ई फरित ना तऽ
ना कबो आ सकित नया मोजर
डाल से पात जो झरित ना तऽ
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या त परबत बने या त जन्नत बने
28
या त परबत बने या त जन्नत बने
जिन्दगी के इहे दूगो सूरत बने
ख्वाब कवनो तराशीं कबो, यार, हम
बात का बा जे तहरे ऊ मूरत बने
दिल के पिंजड़ा मे कैदी बनल ख्वाब के
का पता कब रिहाई के सूरत बने
मन के सब साध पूरा ना होखे कबो
सइ गो सपना में एगो हकीकत बने
सब गिला भूल के हाथ में हाथ लऽ
का पता कब आ केकर जरूरत बने
बहुत नाच जिनिगी नचावत रहल
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बहुत नाच जिनिगी नचावत रहल
हँसावत, खेलावत, रोआवत रहल
कहाँ खो गइल अब ऊ धुन प्यार के
जे हमरा के पागल बनावत रहल
बुरा वक्त मे ऊ बदलिये गइल
जे हमरा के आपन बतावत रहल
बन्हाइल कहाँ ऊ कबो छंद में
जे हमरा के हरदम लुभावत रहल
उहो आज खोजत बा रस्ता, हजूर
जे सभका के रस्ता देखावत रहल
जमीने प बा आदमी के वजूद
तबो मन परिन्दा उड़ावत रहल
कबो आज ले ना रुकल ई कदम
भले मोड़ पर मोड़ आवत रहल
लिखे में बहुत प्राण तड़पल तबो
गजल-गीत 'भावुक' सुनावत रहल
अमन वतन के बनल रहे बस
अमन वतन के बनल रहे बस
हवा में थिरकन बनल रहे बस
इहे बा ख्वाहिश वतन के धरती
वतन के कन-कन बनल रहे बस
हजार गम भी सहे के दम बा
तोहार चाहत बनल रहे बस
बनल रहीं हम हिया में तहरा
हिया के धड़कन बनल रहे बस
रहे न केहू वतन में बेघर
रहे न केहू वतन में भूखा
सभे के रोटी, सभे के कपड़ा
सभे के जीवन बनल रहे बस
नजर में देखत पता लगा लीं
कि उनका मन के हिसाब का बा
इहे तमन्ना बा आखिरी बस
नजर के दरपन बनल रहे बस
हजार सपना सजा के मन में
निकल पड़ल बा सफर में 'भावुक'
सफर के मंजिल मिले, मिले ना
नयन में सावन बनल रहे बस
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अमन वतन के बनल रहे बस
अमन वतन के बनल रहे बस
हवा में थिरकन बनल रहे बस
इहे बा ख्वाहिश वतन के धरती
वतन के कन-कन बनल रहे बस
हजार गम भी सहे के दम बा
तोहार चाहत बनल रहे बस
बनल रहीं हम हिया में तहरा
हिया के धड़कन बनल रहे बस
रहे न केहू वतन में बेघर
रहे न केहू वतन में भूखा
सभे के रोटी, सभे के कपड़ा
सभे के जीवन बनल रहे बस
नजर में देखत पता लगा लीं
कि उनका मन के हिसाब का बा
इहे तमन्ना बा आखिरी बस
नजर के दरपन बनल रहे बस
हजार सपना सजा के मन में
निकल पड़ल बा सफर में 'भावुक'
सफर के मंजिल मिले, मिले ना
नयन में सावन बनल रहे बस
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काँट के साथ बा गुलाब, ए दोस्त
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काँट के साथ बा गुलाब, ए दोस्त
जिन्दगी के इहे हिसाब, ए दोस्त
आज तक पढ़ सकल कहाँ केहू
जिन्दगी के कठिन किताब, ए दोस्त
हम त गुमराह होके रह गइलीं
रह गइल अब त ख्वाब ख्वाब, ए दोस्त
जिन्दगी के भइल रहे बीमा
होत बा लाश के हिसाब, ए दोस्त
प्यार के बीज कइसे अँकुरेला
के दी एह प्रश्न के जवाब, ए दोस्त
प्यार खातिर त सच्चा दिल चाहीं
अब उतारऽ तू ई नकाब, ए दोस्त
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हमरा चुप्पी के मतलब लगावल गइल
हमरा चुप्पी के मतलब लगावल गइल
हमके मगरूर बहुते बतावल गइल
ई लकम तऽ विरासत में बाटे मिलल
कबहूँ रोआँ ना हमसे गिरावल गइल
नइखे एहसास, जज्बात, धड़कन जहाँ
जख्म उहँवाँ अनेरे देखावल गइल
दर्द अल्फाज में ढल गइल, ओसे का
गीत पत्थर के काहें सुनावल गइल
जाने का-का दो मन में फुटत बा रहत
जब से शादी के चर्चा चलावल गइल
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हमरा सँगे अजीब करामात हो गइल
हमरा सँगे अजीब करामात हो गइल
सूरज खड़ा बा सामने आ रात हो गइल
एह मोड़ पर हमार ई हालात हो गइल
खुद जिन्दगी भी बाटे सवालात हो गइल
परिचय हमार पूछ रहल बा घरे के लोग
अइसन हमार हाय रे, औकात हो गइल
जमकल रहित करेज में कहिया ले ई भला
अच्छे भइल जे दर्द के बरसात हो गइल
'भावुक' हो! हमरा वास्ते बाटे बहुत कठिन
भीतर जहर उतार के सुकरात हो गइल
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आदमी जे सहज सरल बाटे
आदमी जे सहज सरल बाटे
खूब हमरा पसन परल बाटे
छोड़ दिहले हँसल ऊ अनका पर
जब से खुद पर नजर पड़ल बाटे
सुख के एहसास नइखे हो पावत
सुख के सामान सब भरल बाटे
दुख के दरियाव से बनल बदरी
आँख का राह से झरल बाटे
भर मुँहे बात जे कइल ना कबो
आज हमरा प ऊ ढरल बाटे
घाम बदनाम बा भले 'भावुक'
पाँव तऽ छाँव मे जरल बाटे
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बात पर बात जब मन परल होई
बात पर बात जब मन परल होई
लोर आँखिन से कतना झरल होई
दोष आँखे प काहे मढ़ाइल हऽ
कुछ कसर उम्र के भी रहल होई
लोग लूटे में लागल अनेरे बा
जब ऊ जाई त मुट्ठी खुलल होई
प्रान जाई मगर ना वचन जाई
कवनो जुग के चलन ई रहल होई
रात में के बा सिसकत सुनहटा में
जाल में कवनो मछरी फँसल होई
माथ पर साया बन के जे बदरी बा
घाम में खुद ऊ केतना जरल होई
आज कीचड़ में भलहीं सड़त बाटे
काल्ह उहे नू खिल के कमल होई
जब बसा लेलीं 'भावुक' के हियरा में
साथ उनके जिअल भा मुअल होई
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आखिर जुबां के बात कलम में समा गइल
आखिर जुबां के बात कलम में समा गइल
गजलो में हमरा जिन्दगी के रंग आ गइल
बरिसन से जे दबा के हिया में रहे रखल
अचके में आज बात ऊ कइसे कहा गइल
उनका से कवनो जान भा पहचान ना रहे
भइले मगर ऊ दूर त मन छटपटा गइल
एह जिन्दगी के राह के होई के हमसफर
सोचत में रात बात ई मन कसमसा गइल
अबले ना जिन्दगी से मुलाकात हो सकल
ऊ साथे-साथ जब कि बहुत दूर आ गइल
कइसे भुला सकी कबो ऊ मद भरल अदा
जवना निगाहे-नूर प 'भावुक' लुटा गइल
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होखे अगर जो हिम्मत कुछुओ पहाड़ नइखे
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होखे अगर जो हिम्मत कुछुओ पहाड़ नइखे
मन में जो ठान लीं तऽ कहँवाँ बहार नइखे
ई ठीक बा कि नइया मँझधार में बा डोलत
बाकिर, कही ई कायर लउकत किनार नइखे
जिनिगी चले ना कबहूँ सहयोग के बिना
जब कइसे कहा ई जाला केहू हमार नइखे
कुछ लोग नीक बाटे तबहीं टिकल बा
धरती कइसे कहीं कि केहू पर एतबार नइखे
कबहूँ त भोर होई, कबहूँ छँटी कुहासा
'भावुक' ई मान लऽ तू आगे अन्हार नइखे
मन के चउकठ पर धइल बाटे दिया उम्मीद के
मन के चउकठ पर धइल बाटे दिया उम्मीद के
भुकभुकाते बा बरत अबले दिया उम्मीद के
रोशनी के राह देखत रात पागल हो गइल
लफलफाते रह गइल, यारे, दिया उम्मीद के
सब उजाला खात बाटे बीच राहे में महलना
जरी लागत बा मड़ई के दिया उम्मीद के
लोग कइसे ओह जगह पर जी रहल बाटे, जहाँ
भोर के नइखे किरन, नइखे दिया उम्मीद के
मन बहुत लरियाह हऽ, सोचे ना कवनो बात के
ई त बाते-बात पर बारे दिया उम्मीद के
जिन्दगी के हर लड़ाई शान से लड़ते रहब
प्राण में जबले जरत बाटे दिया उम्मीद के
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जाईं तऽ जाईं हम कहाँ आगे
जाईं तऽ जाईं हम कहाँ आगे
दूर ले बा धुआँ-धुआँ आगे
रोज पीछा करीले हम, बाकिर
रोज बढ़ जाला आसमाँ आगे
के तरे चैन से रही केहू
हर कदम पर बा इम्तहाँ आगे
एक मुद्दत से चल रहल बानी
पाँव के तहरे बा निशाँ आगे
मन त बहुते भइल जे कह दीं
हम पर कहाँ खुल सकल जुबाँ आगे
टूट जाला अगर हिया 'भावुक'
कुछ ना लउके इहाँ-उहाँ आगे
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Wednesday, January 10, 2007
बात खुल के कहीं, भइल बा का ?
प्यार के रंग चढ़ गइल बा का ?
रंग चेहरा के बा उड़ल काहें ?
चोर मन के धरा गइल बा का ?
हम त हर घात के भुला गइलीं
रउरा मन में अभी मइल बा का ?
आईं अबहूँ रहे के मिल-जुल के
जिन्दगी में अउर धइल बा का
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गजल जिन्दगी के गवाए त देतीं
गजल जिन्दगी के गवाए त देतीं
दिया साधना के बराए त देतीं
कहाँ माँगतानी महल, सोना, चानी
टुटलकी पलनिया छवाए त देतीं
कहाँ साफ लउकत बा केहू के सूरत
तलइया के पानी थिराए त देतीं
बा जाये के सभका, त हम कइसे बाँचब
मगर का ह जिनिगी, बुझाए त देतीं
रही ना गरीबी, गरीबे मिटाइब
अरे, रउआ अबकी चुनाए त देतीं
लिखाई, तबे लूर आई लिखे के
मगर रउरा चिचरी पराए त देतीं
मचल आज 'भावुक' के दिल में बा हलचल
हिया में हिया के समाए त देतीं
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जिनिगी के जख्म, पीर, जमाना के घात बा
जिनिगी के जख्म, पीर, जमाना के घात बा
हमरा गजल में आज के दुनिया के बात बा
कउअन के काँव-काँव बगइचा में भर गइल
कोइल के कूक ना कबो कतहीं सुनात बा
अर्थी के साथ बाज रहल धुन बिआह के
अब एह अनेति पर केहू कहँवाँ सिहात बा
भूखे टटात आदमी का आँख के जबान
केहू से आज कहँवाँ, ए यारे, पढ़ात बा
संवेदना के लाश प कुर्सी के गोड़ बा
मालूम ना, ई लोग का कइसे सहात बा
'भावुक' ना बा हुनर कि लिखीं गीत आ गजल
का जाने कइसे बात हिया के लिखात बा
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जिन्दगी सवाल हऽ, जिन्दगी जवाब हऽ
जिन्दगी सवाल हऽ, जिन्दगी जवाब हऽ
जोड़ आ घटाव हऽ, साँस के हिसाब हऽ
धूप चल गइल त का, रूप ढल गइल त का
बूढ़ भइल आदमी अनुभवी किताब हऽ
रूपगर सभे लगे उम्र के उठान पर
रूपसी का आँख से जे चुए, शराब हऽ
देह बा मकान में, दृष्टि बा बगान में
होश में रहे कहाँ, मन त ई नवाब हऽ
आदमी के स्वप्न के खेल कुछ अजीब बा
जी गइल त जिन्दगी, मर गइल त ख्वाब हऽ
हीन मत बनल करऽ, दीन मत बनल करऽ
आदमी के जन्म तऽ खुद एगो किताब हऽ
दिल में तू धइल करऽ, दिल सदा 'मनोज' के
दूर से बबूर ई, पास से गुलाब हऽ
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जे राग मन में बाटे, सुर पर सधात नइखे
जे राग मन में बाटे, सुर पर सधात नइखे
काहें दो बात मन के, साथी, कहात नइखे
कहिये से जे बा बइठल, भीतर समा के हमरा
हहरत हिया के धड़कन ओकरे सुनात नइखे
बदलाव के उठल बा अइसन ना तेज आन्ही
कहवाँ ई गोड़ जाता, कुछुओ बुझात नइखे
दरियाव उम्र के अब 'भावुक' उफान पर बा
हमरा से बान्ह एह पर बन्हले बन्हात नइखे
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Saturday, January 06, 2007
हिया के पीर छलक के गजल में आइल बा
हिया के पीर छलक के गजल में आइल बा
तबे सुनत त नयन लोग के लोराइल बा
कबो-कबो ऊ अकेला में बुदबुदाताटे
बुझात बा कि बेचारा बहुत चुसाइल बा
देखाई आजले हमरा ना ऊ पड़ल कबहूँ
हिया में, साँस में, धड़कन में जे समाइल बा
कहा सकल ना कबो हाल दिल के तहरा से
मगर ई साँच बा, तहरे में दिल हेराइल बा
निकल के आईं कबो ख्वाब से हकीकत में
परान रउरे भरोसा प अब टँगाइल बा
शहर कहीं ना बने गाँव अपनो ए 'भावुक'
अँजोर देख के मड़ई बहुत डेराइल बा
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