लाख रोकीं निगाह चल जाता
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लाख रोकीं निगाह चल जाता
का करीं मन मचल-मचल जाता
राह में बिछलहर बा, काई बा
गोड़ रह-रह फिसल-फिसल जाता
रूप के आँच मन के लागत हीं
साँस लहकत बा, तन पिघल जाता
के तरे गीत गाईं जिनिगी के
हर घड़ी लय बदल-बदल जाता
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लाख रोकीं निगाह चल जाता
का करीं मन मचल-मचल जाता
राह में बिछलहर बा, काई बा
गोड़ रह-रह फिसल-फिसल जाता
रूप के आँच मन के लागत हीं
साँस लहकत बा, तन पिघल जाता
के तरे गीत गाईं जिनिगी के
हर घड़ी लय बदल-बदल जाता
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