तस्वीर जिन्दगी के

Home | Manoj Bhawuk - Introduction | Bhawuk's Rachna Sansar Tasveer Jindagi Ke Collection of Gazals written by Manoj Bhawuk. This was the First Bhojpuri Book to be awarded by Bharatiya Bhasha Parishad. -------------------------------------------------------------------------------- Manoj Bhawuk gets Bhartiya Bhasha Parishad Award from Gulzar and girija devi.

Friday, January 05, 2007

गजलकार के उद्गार

भूमिका बान्हे हमरा ना आवे. भूमिका आ उहो अपना पुस्तक के, यानी कि आत्मवक्तव्य लिखे के जरूरत भी हम महसूस ना कइनी. गजल या कविता त खुदे अपना-आप में एगो आत्मवक्तव्य होला. निजी तकलीफ होला. उहे तकलीफ अगर एगो समष्ठि भा समुदाय से मैच करे त सार्वजनिक तकलीफ हो जाला. सबकर दुख. अइसन तकलीफ जवना से करेजा फाटे लागे, फूट के गजल बन जाला. बाकिर अपना आन्तरिक उथल-पुथल के सुर आ लय में बान्हे सबका त लूर आवे ना. ई कमाल त सिर्फ शायर के पास होला. शायर के पीड़ा गजल-गीत के आकार लेके सार्वजनिक हो जाला. बाकिर मूल रूप से त ऊ एगो आत्म वक्तव्य ही होला. एही से हम अलग से अलग से आत्म वक्तव्य या भूमिका लिखे के पक्ष में ना रहनी आ आज से साल भर पहिले आपन पुस्तक बगैर भूमिका के ही प्रकाशन खातिर पटना भेज देनी. बाकिर कुछ मित्र आ शुभचिन्तक लोग के जोर-जबरदस्ती के बाद भूमिका के रूप में अपना डायरी के एगो अध्याय खोल रहल बानी. आत्ममंथन आ आत्म सुख खातिर लिखाइल एह अध्याय में बहुत कुछ निहायत निजी बा, जवन अब सार्वजनिक हो रहल बा.

त लीं पढ़ीं, थोड़-बहुत जोड़-घटाव के बाद हमारा डायरी के एगो अध्याय -

भोजपुरी के साहित्यिक संसार में हमार भूमिका उहे रहल बा जवन घर के अंगना में सबसे छोट लइका के. जाहिर बा हमरा भरपूर प्यार-दुलार मिलल होई. एगो लमहर सूची बा... केकर-केकर नाम गिनाईं. आरा बक्सर से शुरू हो के पटना होत छपरा, सिवान, बेतिया, चंपारन आ फेर बलिया, वाराणसी होत रेणुकूट. रेणुकूट से दिल्ली आ दिल्ली से मुंबई - एगो लम्बा सफर. साहित्यिक मंच से ले के रंगमंच, रेडियो, दूरदर्शन, फिल्म, कॉलेज-कोचिंग, गुरु-शिष्य आ इंडस्ट्रियल फिल्ड के तमाम मित्र. चिट्ठी-पत्री, फोन, मेल... प्यार-दुलार, आशीर्वाद, प्रोत्साहन, मार्गदर्शन आ शुभकामना. हम बिना नाम लेले सब केहू के हृदय से आभार व्यक्त करत बानी... प्रणाम करत बानी आ धन्यवाद देत बानी.

अइसे तऽ भोजपुरी में हमरा लेखन के शुरुआत सन् ई. १९९७ में भइल आ हमार पहिला कविता 'माई' 'भोजपुरी सम्मेलन पत्रिका' के जून-९७ अंक में प्रकाशित भइल. तब लिखे में हा् काँपे, बाकिर लिखे के बड़ा चाव रहे. ....... आ सबसे बड़ बात रहे भोजपुरी के महान साधक आचार्य कपिल जी के प्यार-दुलार, मार्गदर्शन आ प्रोत्साहन. आज हम भोजपुरी साहित्य में जहाँ भी बानीं, ओकर श्रेय हमरा एह गुरु आ अभिभावक के जात बा.

ओह घरी लिखे के एगो नशा रहे. 'भोजपुरी के हलचल' नियमित कॉलम लिखीं. फिल्म आ रंगमंच पर विभिन्न अखबारन में हमार आलेख छपे. जब कवनो नया रचना (कविता, कहानी) करीं त बरमेश्वर भइया (श्री बरमेश्वर सिंह) आ द्विवेदी जी (श्री भगवती प्रसाद द्विवेदी) के कार्यालय में ओह लोग के तंग करे पँहुच जाईं. केहू उबियाव ना. लेखन के नया-नया हुनर सीखे के मिलल. जब पटना से दिल्ली गइनी त उहाँ भी ई सिलसिला जारी रहल. जब कबो समय मिले त हास्य-व्यंग्य के महान साहित्यकार डा.रमाशंकर श्रीवास्तव जी के तंग करे पंहुच जाईं. साहित्यिक मीटिंग होखे त अपना मित्र उमेशजी का साथे डा.प्रभुनाथ सिंह जी, पूर्व वित्त मंत्री, बिहार, के तंग करे पहुँच जाईं. तरह-तरह के उल्टा-पुल्टा सवाल. हमार जिज्ञासु मन हमरा के शान्त बइठर ना देलस. इहाँ भी, ऐह अफ्रीका में भी, इन्डस्ट्रियल फिल्ड में भी, हमार ई आदत बरकरार बा- 'तंग करने की मुझको आदत है, क्या करूँ बचपना नहीं जाता.' बाकिर ई आदत हमरा के बहुत कुछ देलस. हरेक पल कुछ-ना-कुछ सीखे आ करे के बेचैनी.

बाकिर सबसे अधिक हम जे केहू के तंग कइले होखब, त अपना गुरू छंदशास्त्री आ भोजपुरी के महान संत कविवर जगन्नाथ जी के. आज हम जवन 'जिन्दगी के तस्वीर' उरेहे के हिम्मत कइले बानी, सब उहें के आशिर्वाद के प्रतिफल बा.

हमरा इयाद बा हमार पहिला गजल 'जिनिगि के जख्म, पीर, जमाना के घात बा / हमरा गजल में आज के दुनिया के बात बा.' 'कविता' के अंक-५ में छपल. एकरा साथे एगो आउर गजल छपल रहे 'गजल जिन्गी के गवाए त देतीं'. इहवें से (सन् २००० से) हमरा गजल-लेखन के शुरुआत भइल. ई दूनो गजल अनायासे लिखा गइल - भाव में बह के. जबकि ओह समय हमरा ठीक से इहो ना मलूम रहे कि गीत आ गजल में का फर्क होला. ......संयोग देखीं, ओही समय पटना दूरदर्शन पर हमरा एगो कार्यक्रम मिलल जवना में भोजपुरी कविता पर हमरा आचार्य पाण्डेय कपिल जी के इंटरव्यू लेवे के रहे. एह इंटरव्यू खातिर हम विधिवत तैयारी कइनी.

बस तबे से गजल के क ख ग घ के पढ़ाई शुरू हो गइल. काफिया, रदीफ, बहर, छंद, अरकान, मक्ता, तखल्लुस आदि बुझाये लागल. कविवर जगन्नाथ जी के ठोक-ठेठाव जारी रहल, ..... ना खाली पटना-प्रवास के दौरान बल्कि पटना से दिल्ली आ दिल्ली से मुंबई अइला पर भी चिट्ठी के मार्फत हमार क्लास चालू रहल. बाकिर छंद के छोड़ा-बहुत ज्ञान हो गइला से केहू गजलगो थोड़े हो जाई. क ख ग घ से ककहरा तक पहुँचे में दू बरिस बीत गइल.

सन् ई.२००० के बाद जुलाई के बाद हमार ध्यान मुंबई के मायानगरी के तरफ कुछ बेसिये खींचा गइल रहे. कंपनी के काम से जब भी अवकाश मिले त हम कवनो-ना-कवनो फिल्मी शख्सियत के इन्टरव्यू लेवे मुंबई पहुँच जाईं. अपना शोध पुस्तक 'भोजपुरी सिनेमा के विकास यात्रा' खातिर भोजपुरी सिनेमा के सुपर स्टार सर्वश्री सुजीत कुमार, राकेश पाण्डेय, कुणाल सिंह, निर्माता - मोहन जी प्रसाद, विनय सिन्हा, हिन्दी सिनेमा के मशहूर अभिनेता सदाशिव अमरापुरकर, निर्माता - कांत कुमार, निहाल सिंह, आ 'तुम बिन' के निर्देशक अनुभव सिन्हा समेत दर्जनों फिल्मकार लोग से भेंट-मुलाकात कइनीं आ भोजपुरी सिनेमा के संदर्भ में बात-चीत कइनी. एही फिल्म-साक्षात्कार के दौरान सुजीत कुमार जी हिन्दी फीचर फिल्म 'एतबार' के शूटिग में सेट पर आवे के नेवता दे दिहनी.

[भोजपुरी सिनेमा के इतिहास, क्रमबद्ध विकास-यात्रा, लगभग दू सौ फिल्म के समीक्षा-पटकथा-गीत आ सुपरहिट फिल्मकार-कलाकार लोग के साक्षात्कार आदि से संबंधित हमार विस्तृत आलेख धारावाहिक रूप में संपादक श्री विनोद देव के पत्रिका 'महाभोजपुर' आ विश्व भोजपुरी सम्मेलन के पत्रिका 'भोजपुरिया संसार' में प्रकाशित हो चुकल बा.]

सन ई० २००३ के शुरुआत में हमरा जिनिगी में अचानक तीन गो रोमांचक मोड़ आइल. ७-८ जनवरी २००३ के एन.एस,ई. ग्राउन्ड, बाम्बे एक्जीविशन से्टर, गोरेगाँव, (पूर्व) के उपरी हॉल में हिन्दी फीचर फिल्म 'एतबार' के सेट पर सदी के महानायक अमिताभ बच्चन से एगो रोमांचक मुलाकात आ भोजपुरी सिनेमा के संदर्भ में बातचीत भइल, (जवन कि डा.रमाशंकर श्रीवास्तव संपादित पत्रिका 'पूर्वांकुर' में प्रकाशित भइल) आ साथ ही निर्देशक विक्रम भट्ट आ अभिनेता जान अब्राहिम से भी परिचय भइल. दरअसल ओह घरी हमरा स्टार लोग से मिले आ बातचीत करे के जुनून सवार रहे. एह से बरखा-बूनी, आन्ही-तूफान, घाम-शीतलहरी, भा मुंबई के लोकल ट्रेन के धक्कम-धुक्की कुछु ना बुझाय. साथ में हमार छोट भाई धर्मेन्द्र रहलें. ऊ पिछला एक साल से पार्श्वगायन खातिर स्ट्रगल करत रहलें, एह से उनका एह सब के आदत हो गइल रहे. उनका पर घाम-बेयार, बरखा-बूनी, आन्ही-तूफान सब बेअसर रहे. साथ ही उनका मुंबई के कोना-कोनी, गली-कूचा के अच्छा जानकारी हो गइल रहे. एह से हमरा कहीं पहुँचे में कवनो परेशानी ना होखे. अइसन बुझात रहे कि अगर ई स्ट्रगल एही तरह जारी रहल त अगिला दू तीन महीना में हम कहीं-ना-कहीं मायानगरी में सेट क जाएब. बाकिर किस्मत के तऽ कुछ आउर मंजूर रहे. हम हंसी-खेल में एगो अफ्रिकन कम्पनी खातिर इन्टरव्यू दे दीहनी आ हमार सेलेक्शन कंपाला, युगाण्डा के एगो नामी कम्पनी Rwenzori Beverage Co. Ltd. में Plant Engineer के पद पर हो गइल आ १६ फरवरी के एअर टिकट भी बुक हो गइल. यानि कि पहिला बेर विदेश प्रवास आ हवाई जहाज के सफर के तिथि तय हो गइल. दुविधा के बावजूद ई एगो रोमांचक मोड़ रहे. तीसरा रोमंचक बात - हवाई जहाज में उड़े के पहिलहीं हमार पाँख कुतर दीहल गइल यानि कि २५ जनवरी के हमार सगाई (छेंका) (engagement) हो गइल. तब सोचनी कि बबुआ भावुक! अब तहार पढ़ल-लिखल हो गइल. चलऽ अफ्रिका. मशीन के साथे मशीन हो जा. बस इहे सोच के एह दू-ढाई बरिस (सन ई० २०००‍-०२) में जवन कुछ लिखाइल-पढ़ाइल रहे, पटना पोस्ट क देनी - 'तस्वीर जिन्दगी के' के रूप में प्रकाशित करे खातिर. जबकि कविवर जगन्नाथ जी के साफ हिदायत रहे कि 'गजल के सड़े दऽ. जवन गजल जतने सड़ी, ओह में ओतने गहराई आई. ....२०-२५ बरिस के सतत साधना के बाद एगो नीमन, पोढ़, ठोस आ बुलंद संग्रह प्रकाशित हो पावेला.'

बाकिर हम अधीर. दुइये-ढाई बरिस में बेचैन हो गइनीं. जाहिर बा संग्रह में खूबी कम, खामी जादा होई. फिर भी पहिलौंठि के लइका बड़ा प्यारा होला. हम जवन कुछ भी लिखले बानी, दिल से लिखले बानी. सुनले बानी जे दिल से जवन लिखाला उहे कविता हऽ, उहे गीत हऽ, आ उहे गजल हऽ.

हमरा गजलन के अगर दू हिस्सा में बाँट दिहल जाय त एक हिस्सा के सृजन पटना में भइल बा त दूसरा महाड़ (महाराष्ट्र) में. पटना में हमार रंगमंचीय मित्रमंडली (बिहार आर्ट थियेटर, कालिदास रंगालय, पटना) खास क के हमार प्रिय मित्र विजय पाण्डेय, दीपक कुमार (अब गीत एवं नाट्य प्रभाग, नई दिल्ली के आर्टिस्ट), पंकज त्रिपाठी (अब राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, नई दिल्ली के छात्र), मंडल, राजीव पाण्डेय, राजीव रंजन श्रीवास्तव, रीना रानी, अंजलि, प्रीति, सोमा, नेहा आ अर्चना बड़ी चाव से हमार गीत-गजल सुने लोग. कई बार त हमरा स्टूडेन्ट लोग (सिंह-भावुक कोचिंग, पटना) के भी हमरा कविताई के शिकार बने के पड़ल बा. गणित के शिक्षक प्रदीप नाथ सिंह के साथ अक्सर देर रात ले बइठकी होखे, जबकि सहायक शिक्षक सुनील मिश्रा हमरा गजलन के कट्टर आलोचक रहलें. बॉटनी के अध्यापक कौशल किशोर देखा-देखी कविता लिखल शुरू कईलें त हमरा बुझा गइल कि कविता-लेखन एगो छुतहा बीमारी भी हऽ. कार्बनिक रसायन के मास्टर नंद कुमार झा (अब पटना मेडिकल कालेज से एम.बी.बी.एस.) आ जन्तु विज्ञान के शिक्षक राजेश कुमार उर्फ दीपू (अब फैशन डिजाइनर) हमरा श्रृंगार रस के कवितन के कंठस्थ क लेले रहे लोग.

फिजिक्स सेन्टर के हमार कोचिंग मेट सुषमा श्रीवास्तव रेडियो आ दूरदर्शन से प्रसारित हमरा हरेक रचनन के कैसेट में रिकार्ड कइले रहली, जवन पटना छोड़े के पहिले हमरा के भेंट क के एगो अद्भुत सरप्राइज दिहली.

हमार बड़का मामा हिन्दी के वरिष्ठ निबंधकार-कथाकार प्रो. राजगृह सिंह (एकमा) जब भी पटना हमरा आवास पर आईं त कविता में प्रतीकन, रूपकन, आ मिथकन के इस्तेमाल पर जोर देबे के कहीं आ वर्तमान समय के विसंगति, विद्रुपता, आ सियासी पैंतराबाजी पर रचना करे के हिदायत दीं. ...आ छोटका मामा, भोजपुरी के कवि-गीतकार, श्री राजनाथ सिंह 'राकेश' आईं त साथे बईठ के रात-रात भर गीत-गजल के सस्वर पाठ होखे.

हमार कई गो गजल आकाशवाणी पटना से प्रसारित हो चुकल बा. एगो गजल 'जिनगी पहाड़ जइसन लागे कबो-कबो' त पटना दूरदर्शन से प्रसारित भोजपुरी धारावाहिक 'तहरे से घर बसाएब' में एगो जोगी पर फिल्मावल भी जा चुकल बा. 'साँची पिरितिया' के कार्यकारी निर्माता आ 'तहरे से घर बसाएब' के निर्माता-निर्देशक श्री राजेश कुमार जी के हम शु्क्रगुजार बानी कि उहाँ का हमार कहानी 'तहरे से घर बसाएब' आ गीत-गजल के पर्दा पर उतारे के पहल कइनीं. एही धारावाहिक से पटकथा आ गीत-लेखन के हमरा पहिला स्वाद मिलल.

हम लोकधुन आ लोकराग पर कईगो गीत लिखले रहीं. 'कइसे कहीं मन के बतिया हमार भउजी, नीन आवे नाहीं रतिया हमार भउजी' आ एगो आइटम गीत 'सुगना सुगनी बन के चले के उड़ान में, एही साल, एही साल, एही साल बबुआ ..... लेके डोली आइब, ले चलब सीवान में, एही साल, एही साल बबुनी ...' के बढ़िया फिल्मांकन भइल रहे. हमरा इयाद बा हाजीपुर में पायलट एपीसोड के शूटिंग के समय पीट-पीट के बरखा होत रहे. कमर भर पानी हेल के हम अपना रेजिडेन्स पाटलीपुत्रा कालोनी में पहुँचल रहीं. ओही समय बिहार इंस्टिट्यूट आँफ फिल्म एण्ड टेलीविजन (BIFT) के बैनर तले एगो आउरी भोजपुरी सीरियल बनत रहे 'जिनगी के राह'. ओकर टाइटल गीत 'औरत के जिनिगी के इहे बा कहानी, अँचरा में दूध बाटे, अँखिया में पानी' हमरे लिखल रहे. ओह सीरियल में हम वित्तरहित कॉलेज के एगो प्रोफेसर के भूमिका अदा कइले रहीं. सोमा जी (सोमा चक्रवर्ती) हमार मेहरारू रहली आ फिमेल लीड (केन्द्रीय भूमिका) में रीना रानी हमार भगिनी रहली. चुँकि हम वित्तरहित कालेज के प्रोफेसर रहीं, एह से हमरा कमाई से हमरा मेहरारू के होठलालियो के खर्चा ना मेन्टेन होखे. हमेशा हमार मेहरारू हमरा पर गभुआइल रहस. रूसल रहस. ... एही ढंग के एगो आउर किरदार जब हम हाईस्कूल में रहीं त हिन्दी नाटक 'नये मेहमान' में कइले रहीं. ओहमें हमार धर्मपत्नी रहली अनिता पांचाली. तब हमरा का मालूम रहे कि धर्मपत्नी के रूप में 'अनिता' नाम ही हमरा लिलार पर साटल बा. ..आ..आ ऊ (अनिता सिंह) हमरे स्कूल में हमरा पिछला क्लास में बइठ के हमार पीछा कर रहल बाड़ी.

खैर 'जिनगी के राह' के शूटिंग के बाद हम भाया दिल्ली मुंबई आ गइनी. फेर ओह सीरियल के पता ना का भइल. एगो चिट्ठी मीनाक्षी संजय जी के आइल रहे 'पटना दूरदर्शन के हालत खराब बा. अच्छा बाजार देख के सीरियल टेलीकास्ट होई.' ..... त कहे के मतलब कि ओह घरी से हमरा फिल्मी स्क्रिप्ट आ फिल्मी गीत लिखे के चस्का लागल. हालाँकि ओकरा पहिले भी पटना रंगमंच के चमकत अदाकार स्व. नूर फातिमा आ युवा निर्देशक श्री चन्द्रेश कुमार पाण्डेय हमरा से रंगमंच खातिर कइ बेर गीत लिखवा चुकल रहे लोग. भोजपुरी नाटक 'मास्टर गनेसी राम' खातिर हम चइता फगुआ आ बिदेसिया के धुन पर अउर कइगो गीत लिखले रहनी, जवना के दर्शक आ रंग-समीक्षक बहुत सराहना कइलें. वरिष्ठ रंगकर्मी श्री आर.पी.तरुण, श्री अजीत गांगुली, आ श्री अरुण कुमार भी हमरा नाट्य-लेखन आ नाट्य-गीत लेखन के प्रोत्साहित कइल लोग.

नाटक के बात चलल त मन परल. भोजपुरी नाटक आ रंगमंच के विकास यात्रा पर हमार विस्तृत आलेख भोजपुरी अकादमी पत्रिका , भोजपुरी निबंधमाला (भाग-४) (संपादक - नागेन्द्र प्रसाद सिंह), भोजपुरी सम्मेलन पत्रिका (संपादक - कपिल पाण्डेय), भोजपुरी लोक (संपादक - डा.राजेश्वरी शाण्डिल्य), विश्व भोजपुरी रंगमंच के पत्रिका 'विभोर' (संपादक - महेन्द्र प्रसाद सिंह), उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी के पत्रिका 'छायानट' के अलावा दैनिक आज, दैनिक हिन्दुस्तान, आ कई गो रंगसंस्थान के स्मारिका आदि में छप चुकल बा. नाटक, रंगमंच आ फिल्म पर विस्तृत निबंध लिखे खातिर हमरा के सबसे पहिले उकसावल आ प्रोत्साहित कइल हऽ भोजपुरी के वरिष्ठ निबंधकार-समालोचक श्री नागेन्द्र प्रसाद सिंह जी के. बाद में भोजपुरी सम्मेलन पत्रिका में भोजपुरी न्यूज 'भोजपुरी के हलचल' लिखे के प्रतिबद्धता देश के कोना-कोनी में मंचित भोजपुरी नाटकन के टोह लेबे खातिर विवश कइलस आ ओकरा बाद नाटककार महेन्द्र प्रसाद सिंह अपना पत्रिका 'विभोर' के सहायक संपादक बना के हमार जिम्मेदारी अउर बढ़ा देनी.

खैर.... अभी त बात चलत रहल हऽ गजल-गीत के, सुर-लय के. हमरा इयाद बा हम पटना से जब कबो अपना गाँवे कौसड़(सीवान) जाईं त ओने से सुर के कुछ सुरसुराहट लेके वापस लौटीं.

हमार बड़का बाबूजी (श्री जंगबहादुर सिंह) भैरवी आ रामायण के अपना समय के बेजोड़ गायक. हालाँकि शुरू में तऽ उहाँ के पहलवान रहनी, बाद में गायकी के शौक जागल. शौक भी अइसन कि एगो पैर आसनसोल, सेनरैले साइकिल फैक्टरी में रहे त दूसरा गाँवे. गीत-गवनई खातिर बार-बार उहाँ के गाँवे आ जाईं. नोकरी में मन ना लागे. बाद में आसनसोल के आस-पास के एरिया झरिया, धनबाद, बोकारो में महफिल जमे लागल. बाकिर ईहाँ के गायन प्रोफेशनल ना रहे आ ना ही ऊ कैसेटिया युग (कैसेट कंपनी के युग) रहे. एह से गायन से आमदनी के रूप में वाहवाही आ तालिये भर रहे. नोकरी-चाकरी से तेरहे-बाइस. बाद में परिवार के बोझ, जिम्मेवारी के एहसास आ पइसा के जरूरत उहाँ के गायन से दूर करत गइल. अइसे त भोजपुरिया समाज के अधिकांश प्रतिभा के सारांशतः इहे दास्तान बा कि ऊ रोजी-रोटी यानि कि नोकरी-चाकरी के बलि-बेदी पर अपना प्रतिभा या शौक के आहुति दे देले बाड़न. बाकिर बड़का बाबूजी के साथे एगो आउर मजबूरी रहे. गला आ आँख के तकलीफ के कारण डाक्टर के मनाही. ई सब कथा हम टुकड़ा-टुकड़ा में अपना बड़का बाबूजी स्व.दीप नारायण सिंह, चाचा स्व.रघुबीर सिंह आ गाँव-जवार के लोग के मुँहे सुनले बानीं. लोग के कहल सुनले बानी कि उहाँ के जब टाँसी लीं त माइक के आसपास के चार गाँव में आवाज गूँज उठे. खास क के भैरवी गायन में त समा बान्ह दीं. तब हम बहुत छोट रहीं. एहसे हमरा कुछ याद नइखे. बाकिर उम्र के एह ढलान पर भी उहाँ के आवाज आ राग-सुर-लय पर पकड़ देख के सहजे यकीन हो जाला. गाँव से पटना लौटला पर हम कई दिन ले उहाँ के गीत गुनगुनात रहीं आ ओह सुर, राग, लय में स्वतः नया-नया गजलन के जनम होत रहे.

रेणुकूट, कानपुर, पटना, दिल्ली आ मुंबई में जे भी हमार करीबी दोस्त आ रूममेट रहल ऊ हमेशा हमरा कवितन के आतंक में रहल, खास क के अनिल, परमात्मा, आदित्य, सुयश, विपिन, अमित, अजीत सिंह, आ हमार मौसेरा भाई संजय कुमार सिंह (इंजीनियर, पावर ग्रिड), आदि मित्र. गाँव जवार में त हम कमे रहल बानी, फिर भी कुछ हित-मीत आ गुरूजन-पुरूजन खास क के कर्मठ व्यक्तित्व के धनी शिक्षक श्री घनश्याम शुक्ल, (पंजुवार), प्रो, विक्रमा सिंह (पतेजी), श्री अखिलेश सिंह(राजपुर), आ सिसवन कालेज के प्राचार्य श्री जगदीश दूबे आदि के बधाई आ प्रोत्साहन मिलत रहल, जवन हमरा रचना के सृजन में सहायक भइल. एकरा अलावे भी बहुत शुभचिन्तक लोग के व्यंग्य-कटाक्ष आ आभी-गाभी मिलत रहल जवन हमरा रचनन खातिर कच्चा माल के काम कइलस. एह सब के सहयोग-असहयोग ना मिलल रहित त अब ले हमरा गजल-गायन पर कर्फ्यू लाग जाइत. अब पता ना कर्फ्यू लगावेवाली के अइला पर का होई?

सुनले बानी कि कवि लोग के अपना घर में कविता के ले के बड़ा ताना सुने के पड़ेला. खैर, हम त खुसकिस्मत बानी कि ताना देबे वाली के शुभागमन से पहिलहीं हमार एगो संग्रह पार घाट लाग गइल. अइसे बाबूजी के डाँट-डपट त सुनहीं के पड़ल बा. भाई लोग हमरा फेवर मे रहे. छोट भाई धर्मे्न्द्र (singer) हमरा कई गो गीत गजल के compose भी कइले बाड़न. बड़ भाई उमेश सिंह के हमार अधिकाश गजल कंठस्थ बा. एह पुस्तक के प्रकाशन में उनकर बहुत बड़ा हा्थ बा. हमरा प्रकाशित-

अप्रकाशित रचनन के अगर ऊ जोगा के ना रखितन त शायद एह संग्रह के प्रकाशन कठिन हो जाइत. हम त 'रमता जोगी बहता पानी' लेखा ईर घाट से मीर घाट... मीर घाट से तीर घाट.... बहत रहनी. पेड़ के डाल से टूटल पतई लेखा उधियात रहनीं. कहीं स्थिर ठौर ठिकाना ना भइल. हमार पता बदलला के मारे कुछ पत्र पत्रिका के संपादक लोग अकुता के चिट्ठी लिखल 'ए भाई, तू एगो स्थायी पता दऽ जवना पर हम लगातार पत्रिका भेजीं.' हम बड़ा फेर में पड़नी. जब हमहीं स्थायी नइखीं त स्थायी पता कहाँ से दीं? पत्रिका हमरा पढ़े के बा. हमरा बाबूजी के थोड़े पढ़े के बा. बाबूजी त हमार कवि-स्वरूप देख के अइसहीं अगिया जालें. दुनिया भर के पागल आ भीखमंगन के नाम गिना देलें. ...खैर स्थायी पता खातिर बेटा बाप के छोड़ के दोसर कहाँ जाई? हम अपना बाबूजी के पता दे दीहनी. काहे कि तब तक हमार बाबूजी रिटायर होके स्थायी हो गइल रहलें. हालांकि उनुका खातिर त स्थायी शब्द के प्रयोग बेइमानिये होई. ऊहो कबो स्थायी ना रहलें. कबो स्थिर ना रहलें. हमेशा भागदौड़.

जे.पी. आन्दोलन से शुरू भइल उनकर राजनैतिक जीवन उनका के हमेशा परिवार से दूर रखलस. लोहिया जी, राजनारायण जी, आ मंत्री श्री चन्द्रशेखर जी से नजदीकी के बाद दिल्ली से दौलताबाद ले मीटिंग, कान्फ्रेन्स आ भाषणबाजी में समय बीतल. दो टूक आ ठाँय-ठूक बतियावे वाला एह यंग एंग्रीमैन के राजनैतिक दाँवपेंच आ सियासी पैंतराबाजी रास ना आइल. बाद में बंगाल, बिहार, आ यू.पी. के कई गो कंपनी में मजदूर यूनियन खातिर संघर्षरत हो गइलें आ अंत में हिण्डाल्को मैनेजमेन्ट से एगो लंबा लड़ाई के बाद नौकरी खातिर तैयार भइलें. बाकिर का नौकरी ज्वायन कइला के बाद स्थायी हो गइलें? ... ना. इहाँ भी फलाना के कोर्ट कचहरी खातिर इलाहाबाद, त चिलाना के इन्टरव्यू खातिर लखनऊ, त ठेकाना के पेन्सन खातिर बनारस, त .... त... त... आ रिटायरमेन्ट के बाद त अउरी फुर्सत हो गइल बा एह सब काम खातिर. ताउम्र उनका कबो अपना घर के भीतर झाँके के फुर्सत ना भइल. आ ना हीं ऊ अपना घर खातिर कबो केहू के सामने हाथ फइलवले या झुकले.

जब ऊ रिटायर भइलें तब हम पोस्ट ग्रेजुएशन में रहीं. पहिला बार हमरा पढ़ाई में पइसा के अभाव महसूस भइल रहे. बाकिर हमरा पास आपन कोचि्ग इन्स्टीट्यूट रहे. ऐह से ओह अभाव में भी उनका ईमानदारी आ निस्वार्थ सेवा से हमरा कवनो शिकवा-शिकायत ना भइल. उनकर कर्मठ आ जुझारू व्यक्तित्व आ निश्च्छल, निष्कपट आ फक्कड़ी स्वभाव हमरा के बहुत बल देले बा.

पइसा आ भौतिक सुख-सुविधा के भूख हमरा कबो ना रहल...आ... ना आज बा. हँ प्यार के भूख जरूर रहल. हमरा याद नइखे कि हमार बाबूजी यानी कि समाजसेवक बाबू रामदेव सिंह जी अपना बेटा से कबो ई पूछले होखस कि ए बबुआ! एह घरी तोहार दशा-दिशा का बा? हम तरस के रह जाईं कि कबो ऊ हमरा पास बइठ के हमार हाल खबर लेस. खबर त ऊ लेबे करस, बाकिर कबो प्रेम से ना. उनकर क्रोधी स्वभाव उनकर बहुत अहित कइलस. हाँलाकि ई उनकर बाहरी स्वभाव हऽ, भीतर से हम उनका के बहुत साफ्ट महसूस कइले बानी. एकरा बावजूद भी हम कबो हिम्मत ना जुटा सकनी कि उनका पास बइठ के कवनो भी बिन्दु पर खुल के राय-मशविरा कर सकीं. बात-बात पर हजामत बने के डर रहे. तब??? ... सब सवाल-जवाब अपना मनवे से. मन जवन कहलस, कइनी. आ आज भी सबसे बड़का साथी उहे बा. उहे गिरावेला, उहे उठावेला, आ बीच-बीच में ठोकर मारेला. गिर-उठ आ ठोकर खात-खात जवन दूरी तय कइले बानी, ओह पर हमरा सन्तोष बा. एह से खुद से कवनो शिकवा-शिकायत नइखे. जवन एहसास आ अनुभव इकट्ठा भइल, ऊ गीत-गजल के शक्ल ले लेलस.

बचपने से हमार मन बहुत चंचल आ संवेदनशील रहल. स्कूल (हिण्डाल्को हायर सेकेन्डरी,रेणुकूट), कॉलेज (बी.एन.एस.डी. इन्टर कॉलेज, कानपुर), आ डिग्री कालेज (ए.एन.कॉलेज, पटना) में अध्ययन के दौरान दिल का साथे कुछ-ना-कुछ अइसन होत रहल जवना के याद सघन हो के काव्य रूप ले लिहलस. मन के साथ जुड़ल नेह-नाता से शृंगार रस के कई गो हिन्दी कविता 'कह नहीं पाता कि तुमसे प्यार करता हूँ',...'फिर कैसे याद नहीं आती',...'छात्र हूँ विज्ञान का',...'दर्द दिल का सहा नहीं जाता',...'तुमसे हो के जुदा',...'पत्थर के जिगर वालों',...'तुम्हें अपना बनाऊँगा',...'दीपों के जलते चिराग से',...'तन-मन-धन सब अर्पित तुझ पर' आदि के उत्पत्ति भइल, जवन कि बाद में आकाशवाणी पटना के युववाणी प्रभाग से प्रसारित भइल. एह कवितन के मुख्य स्रोत किंग जार्ज मेडिकल कालेज से एम.बी.बी.एस. करके अब कनाडा में डॉक्टर बन चुकल बाड़ी.

कॉलेज से रंगमंच आ दूरदर्शन में अइला पर ई बेमारी अउरी बढ़ गइल, बाकिर तब तक हमार झुकाव भोजपुरी लेखन का ओर हो गइल रहे. फलतः भोजपुरी के लव-स्टोरी 'कहानी के प्लाट', 'तेल नेहिया के', 'लड़ेले तऽ अँखिया, बथेला करेजवा काहे?', 'भउजी के गाँव', 'किस्मत के खेल' आ 'तहरे से घर बसाएब' जइसन कहानियन के जनम भइल.

हमरा प्रेम कहानियन पर डा.अशोक द्विवेदी जी के विशेष ध्यान रहल बा आ ऊहाँ के अपना पत्रिका 'पाती' में हमरा के खास जगह देले बानी. आभार व्यक्त करे के फार्मेल्टी हम ना करब. ऊहाँ के प्रति श्रद्धा बा आ रही.

स्कूल, कॉलेज आ रंग संस्थान के तरफ से कईगो महत्वपूर्ण टूर के मौका मिलल. हिण्डाल्को मैनेजमेन्ट वाद-विवाद प्रतियोगिता में हिस्सा लेबे खातिर पिलानी (राजस्थान), वाराणसी आ सारनाथ, एन.सी.सी.कैडेट का रूप में आगरा आ रंग संस्थान नाटकन के मंचन खातिर राजगीर, गया, हाजीपुर (बिहार), गोरखपुर (उत्तर प्रदेश) आदि कई महत्वपूर्ण स्थानन के टूर करे के अवसर मिलत रहल. एही टूर में यात्रा-वृतान्त का रूप में गद्य लिखे के आदत पड़ल. बाद में पद्य आ तुकबन्दी में ही आनन्द आवे लागल आ अब त बिल्कुल छंद-काव्य लय-काव्य यानि कि गजल.

हालाँकि तुकबंदी के आदत त प्राइमरी स्कूल (महिला मंडल आदर्श शिक्षा निकेतन, रेणुकूट) से ही लाग गइल रहे. जब हम पहिला बेर 'क्षमा बड़न को चाहिये, छोटन को उत्पात'(हिण्डाल्को आडिटोरियम में मंचित) नाटक में कवि मुखिया जी के रोल कइले रहीं. इकड़ी-दुकड़ी-तिकड़ी बम, करो काम ज्यादा, बोलो कम - हमार कविता रहे. बाद में जब रामलीला परिषद, रेणुकूट ज्वाइन कइनी आ रामलीला में विभिन्न किरदार निभावे लगनी तऽ रामचरित मानस के दोहा-चौपाई से बहुत प्रभावित भइनी. हायर सेकेण्डरी में भी नाटक के मंचन खातिर स्क्रिप्ट चुने के जिम्मेदारी हमरे के सँउपल जाय. हम लाइब्रेरी में किताबन के हींड़ के रख दीं. दर्जनो नाटक पढ़ला का बाद एगो फाइनल करीं. तब जाके मंचन होखे. तब लाइफ बहुत कलरहुल आ आनन्दमय रहे. बाकिर घाटा ई रहे कि तबे से अध्ययन (Study) से विचलन-कोण (angle of deviation)धीरे-धीरे बढ़े लागल रहे. एह दिसाईं हमार गुरुजी लोग हमेशा हमरा के समझावे. गुरु के प्रति हमेशा हमरा श्रद्धा रहल. चाहे ऊ स्लेट पर चॉक से ज्ञान के पहिला अक्षर अ अउर दू दूना चार के ज्ञानबोध करावेवाला गाँव के प्राइमरी स्कूल के पंडीजी होखीं या जीव-शास्त्र - हृदय, धमनी. शिरा, नाड़ी आ मस्तिष्क के जटिल से जटिल संरचना के भी बड़ी आसानी आ सरलता से मन मस्तिष्क में स्थापित कर देबेवाली हाई स्कूल के वरिष्ठ अध्यापिका श्रीमती कृष्णा सेठी या कानपुर के गणित प्राध्यापक श्री राजकुमार तिवारी, (जेकरा सानिध्य में हम आपन महत्वपूर्ण दू साल गुजरनी), या आइन्स्टीन के सिद्धान्त E=MC2 से भौतिकी आ दुनिया के बीच के संबंध के व्याख्यायित करे वाला पटना के फेमस भौतिकी प्राध्यापक कौल साहब (श्री ए.के.कौल) होखीं. ...सभे अकेला में हमार क्लास लेबे. हम एक कान से सुनीं आ दोसरा से निकाल दीं. गुरुजी लोद समझावे कि एके साथे कई गो नाव पर सवारी खतरनाकहोला. एकै साधे सब सधै. सेठी मैडम त रेणुकूट से कानपुर गइला के बाद भी चिट्ठी लिख-लिख के समझावस. बाकिर हम कुक्कुर के पूँछ. ....आ...ओह घरी त आउरी कुछ ना बुझाय. काहे कि तब तक कानपुर के मोतीझील हमरा के अपना ओर खींच लेले रहे. बाद में पटना के चिड़ियाघर (आ अब युगाण्डा के विक्टोरिया झील). हालाँकि पटना में आचार्य कपिल जी से परिचय के बाद उहाँ के हमरा अभिभावक के भी भूमिका अदा कइनी. पढ़े-लिखे खातिर बेर-बेर डाँट-डपट करीं. बेर-बेर समझाईं कि 'रंगमंच आ साहित्य से पेट ना भरी. पषाई के नजरअन्दाज क के कुछुओ कइल ठीक नइखे.' हमरा बाबूजी के हमेशा हमरा से शिकायत रहल. घर-परिवार आ हीत-नात का नजर में हम आवारा इलीमेन्ट हो गइल रहीं. हमार प्रतिभावान भाई आ मित्र श्री संजय कुमार सिंह (इंजीनियर, पावर ग्रिड) हमरा गतिविधियन से आजिज आ के पटना से लखनऊ भाग गइलें. हम जस के तस रह गइनी. बिल्कुल ठेंठ के ठेंठ... खाँटी के खाँटी. बाहर से भीतर ले बस एक जइसन. 'हमरा से ना हो सकल झूठ-मूठ के छाव, चेहरा पर हरदम रहल आंतर के ही भाव'. ..बिल्कुल नेचुरल. कवनो हवा-बेयार हमरा के ना बदल सकल. कवनो धार हमरा के अपना दिशा में दहवा ना सकल. हम हमेशा धार के खिलाफ बहत रहनी. कुछ लोग मगरूर कहल त कुछ लोग सनकी. तबो हमरा स्वभाव में कवनो परिवर्तन ना आइल. बाकिर इ स्वभाव बहुत महँगा पड़ल. बहुत कुछ टूट गइल ...बहुत कुछ छूट गइल. बाकिर का करीं?

जब आज ले ना सुधरनी त आगे उम्मीद कमे बा. अइसे हमरा अपना उपनाम के हिसाब से नरम होखे के चाहीं. ...तुरंते पिघल जाये के चाहीं. बाकिर नाम त नाम हऽ. नाम से का होला? एह उपनाम 'भावुक' के भी एगो अलगे कहानी बा. केहू प्यार से दीहल आ हम ले लीहनी. केहू के होंठ से फूटल .. हमरा करेजा मे सटल त आज ले सटले रह गइल. संक्षेप में कानपुर से नाम के साथ जुड़ल गिफ्टेड शब्द "भावुक" पटना में विस्तार लेलस आ महाराष्ट्र में भाऊ (भाई) हो गइल.

मन तऽ मने नू हऽ. जवन सट जाला तवन सट जाला. जवन लाग जाला तवन भीतर ले गहिर घाव क देला. हम का कहीं अपना मन के.

गुजरात के गरबा रास(डांडिया नृत्य) के तरह हमार मन भी कवनो एगो धुन पक्का ना कर सकल. हर घरी लय बदलत रहल. दिशा बदलत रहल. जहाँ आनन्द मिलल, मन ओने सरक गइल. मनबढ़ू हो गइल. मन सहक गइल. केहू कुछू समझावे, केतनो समझावे, मन ना माने. बस खूँटा त ओहीजी गड़ाई, जहाँ हमार मन करी. ...आ ....हमार मन. मन के तऽ शुरू से ताली सुने के आदत पड़ गइल रहे. स्कूल से(हिण्डाल्को स्कूल के) मच पर चढ़ के लम्बा‍-चौड़ा भाषणबाजी. शायदे कवनो अइसन कार्यक्रम होखे जवन हमरा भाषणबाजी के बगैर संपन्न होखे. ओकरा एवज में का मिले हमरा? ...पाँच-सात हजार स्टूडेन्ट के ताली आ ओकर गड़गड़ाहट. मन लहलहा जाय. ...ई नशा हऽ. ...शराब से भी ज्यादा खतरनाक. नशेड़ी जहाँ जाला नशा के अड्डा ढूंढ़ लेला. .....नशा के बहाना ढूंढ़ लेला. हम जहाँ भि गइनी भाषणबाजी के अड्डाढूंध लेनी. गाँवे गइनी त "कौसड़ के दर्पण"(गाँव के बायोग्राफी) लिखे लगनी. जबकि ओह समय सबसे ज्यादा जरूरत रहे ऋमार आपन बायोग्राफी सुधारे के. पटना घइनी त उहाँ आपन मित्रद्वय अजय अविनाश आ रामनिवास के साथे मिल के समाज सुधारक संघ गठित क लेनी, जबकि ओह घरी हमरे में एक लाख सुधार के गुंजाइश रहे. रोज नाराबाजी, झाडाबाजी, सड़क जाम, डी.एम. वगैरह के घेराव, त मंत्री के निवास पर हो-हल्ला, .....वगैरह-वगैरह. एह से मन ना भरल त रंगमंच ज्वायन कइनी. फेर साहित्य मंच, काव्य मंच वगैरह-वगैरह. हर जगह ताली-पर-ताली. तालियन के बौछार. बाकिर तब तक ई ना बुझाइल रहे कि ताली के भीतर भी गाली छुपल रहेला. लोग खाली रउरा सफलता पर ही ताली ना पीटे. रउरा असफलता पर भी ताली पीटेवालन के एगो लम्बा कतार होला.. ओह कतार के ओर मुड़ के तऽ हम कबो देखलहीं ना रहीं. रउरा कहीं फिसल जाईं, गिर जाईं, लुढ़क जाईं, ढिमिला जाईं त उहवाँ रउरा के संभाल के उठावे वाला भले केहू ना मिले, रउरा उपर थपरी बजावेवाला, ताली पीटेवाला जमात जरूरे मिल जाई.
बाबूजी के रिटायर भइला के बाद हमार आँख खुलल त हम पीछे मुड़ के देखनीं कि हमरा वर्तमान स्थिति पर थपरी पीटेवालन के एगो लंबा कतार बा. तब हम बिल्कुल बिखर गइल रहीं. ....हमार ऊर्जा कई गो क्षेत्र में बँट गइल रहे. ....मन बिखर जाये त ओकरा के समेटल बहुत मुश्किल काम होला.
स्कूलिंग के दौरान गणित हमार प्रिय विषय रहे, बाकिर इंडस्ट्रियल लाइफ से हमरा चिढ़ रहे. मशीनी काम-काज हमरा तनिको ना भावे. हम छोट रहीं तबे से हमरा घरे दमकल(पंपिंग सेट) बा. हमरा इयाद बा जब कबो दमकल बिगड़ जाये आ ओकरा के बनावे खातिर मिस्त्री बोलावल जाय त हम उहाँ से धीरे से टरक जाईं कि हमरा के कवनो काम मत अढ़ावल जाय. इहाँ तक कि जब घर के चाँपाकल बिगड़ जाय नया वाशर लगावे का डरे हम घर से बगइचा में भाग जाईं. लोहा लक्कड़ के कल-पूर्जा मे हमरा कवनो दिलचस्पी ना रहे... ....हँ, आदमी के कल-पूर्जा में दिलचस्पी जरूर रहे. हम गणीत छोड़ के बायोलॉजी चुननी, ....अपना जिद्द पर, बाबूजी के मर्जी के खिलाफ. सैकड़न डिग्री-डिप्लोमाधारी के नौकरी देबेवाला बाबूजी के हमरा से भी इंजीनियरिंग के उम्मीद रहे. पढ़े-लिखे में ठीक रहीं, एह से अइसन उम्मीद भी स्वाभाविक रहे. ...पर हम खूँटा त ओहिजा गड़ाई के सिद्धान्त पर कायम रहनी.

पटना आ के तितर-बितर हो गइनी. 'अर्जुन के मछली के आँख' वाली दृष्टि खतम हो गइल.कॉकरोच के आँख की दृष्टि पनपे लागल. एगो चीज के टुकड़ा-टुकड़ा में देखे भा एके साथे कई गो चीज पर दृष्टिपात करे के रोग लाग गइल. रेशम के कीड़ा के तरह अपने ऊपर जंजाल के जाल बुनाये लागल. एजुकेशन के दौरान ही रंगमंच, साहित्य आ काव्य मंच, समाज सुधारक संघ, रेडियो-दूरदर्शन आ अब एगो कोचिंग इंस्टीट्यूट के भी स्थापना हो गइल. सिंह-भावुक कोचिंग. पढ़ावे में परमानन्द आवे लागल. एह से बढ़िया भाषणबाजी के मंच दोसर होइये नइखे सकत. हम केमिस्ट्री आ फिजिक्स पढ़ावत-पढ़ावत जीवन-दर्शन, प्यार, रंगमंच आ साहित्य में उतर जाईं. केमिस्ट्री के अधिकांश फार्मूला के पोएट्री बन गइल रहे. ह,रा हरेक स्टूडेन्ट के आवर्त-सारणी के सारा तत्व आ इलेक्ट्रोकेमिकल सिरिज जुबानी याद रहत रहे. ई सब पोएट्री (कविता) के कमाल रहे. .....हमरा आउर का चाहीं. भोरे-भोरे भर पेट 'प्रणाम' मिले. हम ओही में गच्च रहीं.भावुक सर. ...भावुक सरके अनुगूँज से मन प्रफ्फुलित रहे लागल. स्टूडेन्ट के बूढ़ बाप जब अपना बेटा-बेटी के उज्जवल भविष्य खातिर सामने हाथ जोड़ के खड़ा हो जाय तब पूछहीं के का रहे. हमरा बुझाइल जे हम भविष्य-निर्माता हो गइनीं (जबकि हमरा खुद के भविष्य के कवनो ठीके ना रहे). चार साल के अध्यापन के दौरान हमार कई गो स्टूडेन्ट मेडिकल कम्पीट कइलें. (ऊ आज भी मेल भा फोन से कान्टेक्ट में बाड़न). हमरा ओही में आनन्द आवे लागल. उनके उज्जवल भविष्य देख के हमरा चेहरा पर चमक आवे लागल. अपना भविष्य के कवनो ख्याले ना रहे. हम अपना के सुबह से रात तक एतना ना व्यस्त क लेनी कि अपना बारे में सोचे के फुर्सते ना रहे..... ना होश. कोचिंग-कॉलेज-रंगमंच-साहित्य-शूटिंग दिनचर्या बन गइल रहे.

शुतुरमुर्ग के तरह आवेवाला खतरा से मुँह मोड़ के ओने पीठ क देले रहीं, हम. बाकिर का खतरा से मुँह मोड़ लेला से खतरा टल जाई ? खतरा आइल.... बाबूजी के रिटायरमेन्ट के बाद नौकरी के जरूरत महसूस भइल. संयोग अच्छा रहे कि तब तक हमार चयन सेन्ट्रल इंस्टीट्यूट आफ इंजिनयरिंग एण्ड टेक्नोलॉजी में हो गइल रहे. कोर्स कम्प्लीट भइला के बाद नौकरी के तलाश शुरू हो गइल.
जवना इंडस्ट्रियल लाइफ से चिढ़ रहे हमरा, ओही में इन्ट्री खातिर छटपटाहट शुरू हो गइल. एकरे के कहल जाला, वक्त के मार आ मजबूरी.

मजबूरी पटना से दिल्ली आ दिल्ली से मुंबई खींच ले आइल आ अब अफ्रीका.

पटना छोड़ल भी आसान ना रहे हमरा खातिर. दिल्ली के नौकरी कॉन्फर्म भइला का बाद भी दू महीना लाग गइल पटना छोड़े में. तब दू-दू गो धारावाहिक 'तहरे से घर बसाइब' आ 'जिनिगी के राह' के स्क्रिप्ट पर काम करत रहीं. कई गो सिरियल के शूटिंग बाकी रहे. अनिल मुखर्जी जयन्ती पर नाटक के मंचन करे के रहे. कोचिंग के कोर्स पूरा करावे के रहे. दिन-रात एक क के सब काम निपटइनी आ फेर आपन संत-आठ साल पुरान (सन् ई. १९९३-२००१) पटनहिया खोंता उजाड़ के चल देनी जीवन के नया अध्याय शुरू करे.

नया सबेरा के शुरुआत भइल दिल्ली में. हालाँकि दुइये-तीन महीना रहनी बाकिर उहाँ के कई गो प्रसंग हमरा बड़ा इयाद आवेला. डा.रमाशंकर श्रीवास्तव जी के देख-रेख में आयोजित महामूर्ख सम्मेलन आ जलपान में ठेकुआ आ कटहर के तरकारी के इयाद हर फगुआ में ताजा हो जाला.

दिल्ली के एगो आउर प्रसंग संस्मरण बन गइल बा. फगुआ के दिने रात के बारह बजे हमरा दाँया नाक से ब्लीडिंग शुरू भइल त रुके के नामे ना लेत रहे. हमार इंडस्टरियल मित्र सुनील राय (क्वालिटी कंट्रोल इंजिनियर) आ राजेश कुमार उर्फ दीपू (फैशन डिजाइनर) हमरा के लाद-लूद के कॉलरा हास्पीटल में डाल दीहल लोग. दू दिन में डाक्टर १५ हजार रुपिया चूस गइल बाकिर कुच लाभ ना मिलल.
बाद में डा.प्रभुनाथ सिंह जी हमरा के उमेशजी का साथे डा. राम मनोहर लोहिया अस्पताल भेज देनी. कुछ ना रहे. नाक के झिल्ली सूख के नखोरा गइल रहे.

अस्पताल से तालकटोरा वाला रेजिडेन्स पर वापस अइनीं तऽ डा. प्रभुनाथ सिंह जी पूछनीं - का हो उमेश, का कहलऽ सऽ डाक्टर. उमेश जी मजाक कइलन - कहलऽ सऽ कि नाक के हड्डी टेढ़ हो गइल बा. एह पर डा. प्रभुनाथ सिंह जी कहनीं कि ...ऐ भावुक. देखऽ ... नाक के हड्डी टेढ़ हो जाय, कवनो बात बइखे, ...नाक से खून बहे, कवनो बात नइखे, ...इहाँ तक कि नाक टूट जाय कवनो बात नइखे. बाकिर नाक कटे के ना चाहीं. इहे भोजपुरिया स्वभाव हऽ.

ई स्वभाव लेके हम अफ्रिका आ गइनी. एकरा के फार्मूला बना लेनी. 'हाथ में करिखा (मोबिल, आयल, ग्रीस) कवनो बात नइखे ... बाकिर मुँह मे करिखा ना लागे के चाहीँ.' केहू हमरा पर अंगुरी मत उठावे. ई सिद्धान्त जीवन-दर्शन बन के हरेक पग पर हमार मदद कर रहल बा. फलतः जवना इंडस्ट्री के नामे से हम थर-थर काँपी, उहाँ साँढ़ आ भँईसा से भी खतरनाक युगण्डन के ऊपर हाथ फेर के चुचकार-पुचकार रहल बानी आ कंपनी के दू-दू गो प्लान्ट के सिफ्ट इंचार्ज के भार अपना कमजोर कान्ह पर ढो रहल बानी. वक्त सब सिखा देला, ए भाई ...पेट सब पढ़ा देला.

देखीं...... 'बात पर बात' बढ़ल जा रहल बा. अभी एकर अवसर नइखे. का करीं. भाषणबाजी के आदत से लाचार बानी. जाये दीं, हम अपना वाचालता खातिर माफी मांगत फेरू वापस लौटत बानी गजल आ गजल-संग्रह के परिधि का भीतर आ आपन बात समेटत बानीं.

हँ तऽ गजल के दूसरा हिस्सा के सृजन महाड़ (महाराष्ट्र) में भइल बा. छत्रपति शिवाजी महाराज के जन्मस्थली रायगढ़ (महाड़) के प्राकृतिक सुन्दरता ...नदी, झील, झरनामन केबड़ा सकून देले बा आ हर घरी मन में कवनो-ना-कवनो धन गूँजत रहल बा. ...हमार भोजपुरिया मित्र आ रूम-मेट वेदप्रकाश यादव (इलेक्ट्रिकल इंजीनियर) हमरा के बहुत बर्दाश्त कइले बाड़न. हालाँकि बेर-बेर मुंबई जाये खातिर उहे उकसावस भी - 'घर में हाथ-प-हाथ ध के बइठला से कुछ ना होई, ए भावुक जी, ... कुछ पावे खातिर लड़े के पड़ेला.' उनका खोदला-खोदियवला से हमार मुंबई जाये के आवृति (frequency) बढ़ गइल. मुंबई में हम अपना तेज-तर्रार समाजसेवी मित्र डा. ओमप्रकाश दूबे (दूबे इस्टेट नालासोपारा के मालिक) के पास ठहरीं. दूबेजी से हमरा अनुजवत् स्नेह आ सहयोग मिले. बहुत कुछ हासिल भइल. छोट भाई धर्मेन्द्र मुंबई में पार्श्वगायन खातिर संघर्षरत रहलें. हमरा बुझाइल जे हमहूँ मुंबई सिफ्ट क जाएब. कई गो हिन्दी आ भोजपुरी के फि्ल्म में अभिनय करे आ गीत लिखे के आफर मिलल. बालाजी टेलीफिल्म्स के धारावाहिक 'कसौटी जिन्दगी की' में भी काम मिलल. बाकिर अफ्रीका के मोट पइसा आ पइसा के जरुरत अपना ओर खींच के सब काम चौपट क देलस. सब मेहनत डाँर गइल.

हम दुविधा में पड़ गइनीं. ओही समय पटना से दूगो पोस्टकार्ड आइल. नाटककार सुरेश काँटक जी लिकले रहीं - 'का कहले रहीं हम तोहरा के, उगता हुआ सूरज ... हमरा पूरा उम्मीद बा भाई कि तू मुंबई में भी आपन पैर जमा लेबऽ'. दूसरा चिट्ठी लोकगायक ब्रजकिशोर दूबे जी के रहे -'हमरा पूरा विश्वास बाकि तू पटना से दिल्ली, आ दिल्ली से मुंबईये ना, विदेशो जइबऽ'. एह दूनो चिट्ठी के बीच के अन्तर अब साचहूँ हमरा सामने एगो जटिल सवाल बन के खाड़ हो गइल रहे.

हम अफ्रीका चल अइनी. सब कुछ छोड़ के. साहित्य, रंगमंच, फिल्म, घर-परिवार, माई-बाप. अफ्रीका के एह जंगल में रास-रंग से भरल ऊ दिन टीस बनके कबो-कबो बहुत परेशान करे. अनायासे गीत के बोल कुलबुलाये लागे. एगो हिन्दी फीचर फिल्म खातिर आइटम गीत लिखले रहीं - 'सब आँखे चार करते हैं, मैं आँखे आठ करता हूँ. मैं चश्मेवाला हूँ, चश्मेवाली से प्यार करता हूँ', ई गिट पर्ल पॉलिमर्स लिमिटेड के हर स्टॉफ के जुबान पर रहे. हर पार्टी में गवाय. 'दिल से यूँ न भुला देना'...'जिनसे नजरें बचाते रहे हम' आ भोजपुरी गीत 'दिल के गली में अचके गुलजार हो गइल बा, मोहे प्यार हो गइल बा, तोहे प्यार हो गइल बा'. ...जइसन तमाम फिल्मी गीतन के रचना ओही मौसम आ मिजाज में भइल.

बाकिर भारत से युगाण्डा अइला पर सब कुछ ठप्प हो गइल. हम सांचहूँ मशीन के साथे मशीन हो गइनी. बाकिर एक दिन अचके internet पर search करत में हमरा Bhojpuri Website लउक गइल. बस हम फेर सक्रिय हो गइनी. हमार गीत-गजल website पर लउके लागल. हम धन्यवाद दीहल चाहब Bhojpuri Website के Moderator आ MECON Limited, Ranchi के Senior Structural Engineer श्री विनय कुमार पाण्डेय जी के, जे अतना महत्वपूर्ण आ जरूरी काम के अंजाम दीहलें. विश्व के मानस-पटल पर भोजपुरी के स्थापित करे उनकर प्रयास एक दिन जरूर रंग ले आई. साथ ही साथ हम Bihari Website के Administrator श्रीमती ज्योति अंजनी झा (जे कि Boston, USA में कार्यरत बाड़ी) के भी शुक्रगुजार बानी, जे हमरा के पसन्द कइली आ अपना साइट पर आमन्त्रित कइली. आज हमरा गीत-गजल पर USA, जर्मनी, जापान, मारीशस, फिजी, गुयाना, टोक्यो, सुरीनाम आ विश्व भर में फइलल भोजपुरियन के प्रतिक्रिया आ रहल बा.हम साँचहूँ में भाव विभोर बानी.

आज हमार कलम फेर सक्रिय हो उठल बा. हम फेर कुछ ना कुछ लिखे लागल बानी. अइसना में अपना गुरुद्वय आचार्य कपिल आ कविवर जगन्नाथ जी के बहुत याद आ रहल बा. 'कठिन से कठिन परिस्थिति में भी रचनाशीलता आपन राह ढूंढ़ लेले. एह से एह विषय में चिन्ता करे के जरूरत नइखे. तू अकेले नइखऽ. भगवान हमेशा साथे रहेलें. हमनी के आशीर्वाद तहरा साथे बा. तू जीवन के हरेक क्षेत्र में सफल होखबऽ.' एही आशीर्वचन से हमार विदाई भइल रहे इण्डिया से.

आज हम आपन गजल-संग्रह मन से आ सरधा से अपना एह गुरुद्वय के समर्पित कर रहल बानी. हमरा एह संग्रह के प्रकाशन के सारा श्रेय - श्रीगणेश से पूर्णाहुति तक के सारा श्रेय - भोजपुरी साहित्य के एही दूनो महान कवि के जात बा.

एह सब के बावजूद बहुत संकोच हो रहल बा. गजल जइसन छान्दिक अनुशासन के माँग करेवाली आ नजाकत से भरल विधा में डुबकी लगावल हमरा जइसन बेतैराक खातिर बड़ा कठिन काम बा. .....अपने सभे के पीठ ठोकला आ तारीफ कइला से उत्साहित होके हिम्मत कर रहल बानी. ...अउर ... आज आपन पहिला प्रयास अपने के सोझा रख रहल बानी, इहे सोच के कि एह दू-ढाई बरस के अध्ययन के बाद (सन् ई. २००० से २००२) 'तस्वीर जिन्दगी के' के रूप में एगो गजल के विद्यार्थी के परीक्षा हो रहल बा. रउरा सभे परीक्षक बानी आ हम परीक्षार्थी.

अब पास करीं भा फेल.

हमरा पास ना तऽ जिनिगी के पोढ़ अनुभव बा, ना दूरदर्शिता आ ना ही निर्तर अभ्यास के फुर्सत. बस चिचरी पारत-पारत कुछ लिखा गइल बा. रियाज करत-करत कुछ सुर सध गइल बा. बल्कि साँच कहीं तऽ जब-जब दुख-तकलीफ या हँसी-खुशी गुनगुनाहट के रास्ता से बाहर निकलल बा, त ऊ गीत बन गइल बा. हमार अधिकांश गजल अइसने असामान्य परिस्थिति के उपज हईं सन. एह उपज के एको गो शेर यदि रउरा मरम के छूवे, मन के उद्वेगे, आ साँस में गूँजे त हमरा रचनाकार के बहुत खुशी होई. बड़ा सकून मिली. खामी भी बताएब त नया दिशा मिली, एह से एकर भी स्वागत रही, इंतजार रही.
ओह खामी के दूर क के हम अउर बुलन्द-संग्रह देबे के प्रयास करब. आजकल पता ना काहे हमार मन पहिले से ज्यादा गुलाबी आ चटखार गजलन के रचना करे में सक्रिय हो गइल बा. पता ना, ई हमरा जर्मन फ्रेण्ड तन्या केप्के के लगातार आ रहल भाव-भरल मेल के प्रभाव हऽ, या कि विश्व के सबसे बड़ा मीठ पानी के झील (विक्टोरिया झील) में झिझरी खेलला के असर, या कि बिआह के डेट खातिर अंगुरी पर दिन गिनत साथी के इण्डिया से लगातार आ रहल प्रेम-पत्र के जादू, या कि साथ में कार्यरत मराठी मित्र आ रूम मेट सुनील आनन्दमाली के पियानो से निकलत तरह-तरह के धुन पर आपन सुर साधे के प्रयास. ..... उम्मीद बा अगिला संग्रह ज्यादा र्गीन आ जीवंत होई.

फिलहाल एह संग्रह के प्रकाशन में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जेकर भी सहयोग मिलल बा, हम सबका प्रति हार्दिक आभार पव्यक्त करत बानीं. खास क के भोजपुरी-हिन्दी के ओह पत्र-पत्रिकन के प्रति, आकाशवाणी, दूरदर्शन आ काव्य-मंच के प्रति जे हमरा के पाठक, श्रोता भा दर्शक से जोड़लस.
'कविता' के अंक-८ में खास कवि बना के आ सन् ई. २००३ में प्रकाशित गजल-संग्रह 'समय के राग' में भोजपुरी के स्वनामधन्य १६ गो गजलकार का साथे यानी कि सेव, संतरा, मोसम्मी आ आम, अंगूर, लीची से भरल बाग में एह रेड़ी के पेड़ के भी शामिल कर के कविवर जगन्नाथ जी हमार मन आ मान दूणो बढ़ा देले बानी. हमरा गजल के उछाले में 'कविता' के बाद 'भोजपुरी सम्मेलन पत्रिका'(पाण्डेय कपिल), पाती (डा.अशोक द्विवेदी), पनघट (जवाहर लाल 'बेकस'), महाभोजपुर (विनोद देव), भोजपुरिया संसार आ पूर्वांकुर (डा. रमाशंकर श्रीवास्तव), भोजपुरी लोक (डा. राजेश्वरी शाण्डिल्य), खोईंछा (डा. दिनेश प्रसाद शर्मा), रैन बसेरा (अहमदाबाद), आनन्द डाइजेस्ट आ दैनिक आज, पटना आदि के प्रमुख हाथ रहल बा. हम एह सब पत्र-पत्रिकन के फले-फूले आ मोटाये-गोटाये के कामना करत बानीं.

भोजपुरी के वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. ब्रजकिशोर, डा. शंभुशरण, श्री बरमेश्वर सिंह, आचार्य ऽिश्वनाथ सिंह, डा. गजाधर सिंह, श्री कन्हैया प्रसाद सिंह, निर्भीक जी, पराग जी, श्री कृष्णानन्द कृष्ण, प्रो. हरिकिशोर पाण्डेय, दक्ष निरंजन शम्भु, कथाकार भास्कर जी, सत्यनारायण सिंह, कवियत्री सुभद्रा वीरेन्द्र, भगवती प्रसाद द्विवेदी, हास्य कवि विचित्र जी, पत्रकार - रविरंजन सिन्हा, राकेश प्रवीर, आलोक रंजन, संजय त्रिपाठी, प्रमोद कुमार सिंह, श्रीमती अंजीता सिन्हा, श्रीमती रूबी अरुण, संजय कुमार, आ युवा सहित्यकार भाई साकेत रंजन प्रवीर, जीतेन्द्र वर्मा, जयकांत सिंह 'जय' आ अंबदत्त हुंजन आदि विद्वान साहित्यकार से जफन स्नेह, सहयोग आ प्रोत्साहन मिलल बा,ओकर एगो अलगे महत्व बा.

हम बहुत-बुत आभारी बानी आदरणीय कविद्वय श्री सत्यनारायण जी आ श्री माहेश्वर तिवारी जी के, जे एह संग्रह के भूमिका लिख के एकर मान बढ़ा देले बा.

अब हमरा अपना गजलन के बारे में कुछ नइखे कहे के. अपना दही के खट्टा के कहेला? .....असली स्वाद त रउरा बताएब. हम त बस अतने निहोरा करब कि अपने खाली छाल्ही मत खाएब .....खँखोरी ले जाएब ....... तब असली स्वाद मिली.

हमरा बेसब्री से इन्तजार रही अपने सभे के स्वाद के, बेशकीमती टिप्पणी के, स्पष्ट प्रतिक्रिया के आ बेबाक समालोचना के.

बस, बहुत हो गइल. ......अब हम आपन बकबक अपना चंद शेर के साथ बंद कर रहल बानी -
हिन्दू मुस्लिम ना, ईसाई ना सिक्ख ए भाईअपना औलाद के इन्सान बनावल जाये
जेमें भगवान, खुदा, गॉड सभे साथ रहेएह तरह से एगो देवास बनावल जाये
लाख रस्ता हो कठिन, लाख मंजिल दूर होआस के फूल ही अँखियन में उगावल जाये
आम मउरल बा, जिया गंध से पागल बाटेए सखी, ए सखी, 'भावुक' के बोलावल जाय

- मनोज भावुक

१४ नवम्बर २००३कापाला, युगाण्डा(पूर्वी अफ्रिका)

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